Friday 3 April 2015

मेरी एक ग़ज़ल पेश है
------------------------------------
इस सतह तक उतर नहीं सकते
हम तो आपस में लड़ नहीं सकते
कर तो सकते हैं प्यार की खेती
ज़हर धरती में भर नहीं सकते
सरहदों पर है जान सौ कुर्बान
पीठ दिखला के मर नहीं सकते
जिससे नफरत का ज़ेहन बनता हो
उन किताबों को पढ़ नहीं सकते
जिनकी फ़ितरत में चालबाज़ी हो
लोग ऐसे सँवर नहीं सकते
दाम पे दाग़ जिससे हो 'ज़ीनत'
काम ऐसा भी कर नहीं सकते
------डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'

1 comment:

  1. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

    ReplyDelete