Friday 30 August 2013

जीत हिस्से में तू लिख दे,मुझे हारा कर दे
एक बेनूर स्याह टूटा सितारा कर दे 

नाम लिख कर मेरा नफ़रत से मिटा दे ख़त से 
और किस्मत का मेरे दोस्त तू मारा कर दे  

तुम तो रहो मीठा ही ओस की बूंदे बनकर 
आँखों के समन्दर को मेरे खारा कर दे 

ठोकरें खाना लिखा है दर दर तौबा 
थाम कर हाथ मेरा ए दोस्त किनारा कर दे 

तू सलामत रहे ए दोस्त बलाओं से बचे 
रंजो गम जिंदगी के अपने हमारा कर दे  
--------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

ले मुझे ओढ़ के सो जा तू,मुकम्मल हो रात 
फिक्र के जाड़े की ठिठुरन ने जगाया है तुझे 
---------------------------कमला सिंह ज़ीनत 
Le mujhe odh ke so ja tu mukammal ho raat Fikr ke jaade ki thithuran ne jagaya hai tujhe
----------------------kamla singh zeenat

मेरे दहलीज़ पर ए चाँद मुकम्मल तू ठहर
गर नहीं ऐसा हो मुमकिन तो अमावस हो जा
-------------------कमला सिंह ज़ीनत
ere dahleez par aye chaand mukammal tu thahar Gar nahi ayesa ho mumkin to amaawas ho ja
---------------------------------KAMLA SINGH ZEENAT
रात तू मांग मेरे वास्ते कुछ खास ख्याल
मैं ग़ज़ल लिखने को बैठी हूँ कोई शेर बने
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत 
Raat tu maang mere waaste kuchch khaas khyaal Main ghazal likhne ko baithi hun koi sher bane
-----------------------------kamla singh zeenat

Thursday 29 August 2013

आतुर है बरसने को मन का बादल 
तरुनी सी अल्हड़ और चितवन चंचल
सीमा नहीं कोई उसकी बरसने की  
घुमती है बरसने को मनभावन पागल 

दीवानी सी घुमती है ये यहाँ से वहां 
बरसती है फिर घूम कर जहाँ तहां 
दीखती  है इसके दिल की बेचैनी 
होश नहीं इसको इसका भीगता आँचल 
--------------------कमला सिंह ज़ीनत 

Wednesday 28 August 2013

डाल कर आओ एक शेर उस गूंगे की गर्दन में 
अगर गूंगा नहीं बोल तो मेरा शेर झूठा है 
----------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
Daal kar aao tum ek sher us guunge ki gardan mein
Agar guunga nahi bola to mera sher jhuutaa hai
-------------------------------------kamla singh zeenat 
पलों की कीमत सदियों के पास भी नहीं 
जिंदगी का बीता पल सदियों तक नहीं
---------------------------कमला सिंह ज़ीनत 
palon ki kimat sadiyon ke pas bhi nahi 
zindgi ka beeta pal sadiyon tak nahi 
------------------------------kamla singh zeenat  

और मैं चुपचाप देखती रही

और मैं चुपचाप देखती रही 
--------------------------------------
कल एक दोस्त से मिली 
मिली क्या ------कहूँ तो 
बातें की 
और उसका असली रूप देखा 
वैसे बड़ा ही प्यारा था 
बातें भी बड़ी प्यारी थी उसकी 
ऐसा लगा जैसे वो मुझ जैसा है 
वाकई ………. 
मेरी तरह शायद जिंदगी को करीब से देखा है 
बहुत अच्छा लगा 
लगा जैसे यूँ ………। 
मैं अकेली नहीं इस दुनियां में 
मुझ जैसे और भी हैं 
परन्तु मैं अभिमानी नहीं …. 
उसकी बातें तो प्यारी थी ………. 
लेकिन वो अभिमानी था 
उससे सच और झूठ का ज्ञान नहीं 
शायद ……… 
शायद अभिमान में अपने दोस्ती को,
तराजू में उससे तोलना नहीं आया 
उसने प्यार से जताए हक को भी गलत  समझा 
अच्छा हुआ।  
अच्छा हुआ.…………  मेरे कदम आगे बढ़ते और 
मैं चकनाचुर… । 
लेकिन संभल गयी मैं 
मेरे कदम बढ़ने से पहले जम से गए 
ठिठक गयी मैं …….  
ठिठक गयी उसके लगाये लांछन से 
हिम्मत ना थी की मैं 
आगे बढूँ दोस्ती में 
कदम तो मेरे पत्थर के हो गए जैसे 
और हो भी क्यों न 
ये रिश्ता बड़ा ही नाजुक होता है 
कच्चे  धागे की तरह 
खुदा की दी हुई बहुत बड़ी नेमत है ये 
लेकिन। ……………… 
ये सबके बस की बात नहीं 
दोस्ती कोई व्यापार नहीं 
दोस्ती कोई खिलवाड़ नहीं 
दोस्ती कोई सामान नहीं 
थोड़ी देर के लिए मैं टूटी तो सही 
पर 
असलियत जान गयी 
अपनी जगह जान गयी उसकी जिंदगी में 
वो चला गया 
मैं देखती हैरान सी देखती रही 
खड़ी रही स्तब्ध सी 
वो चला गया मेरी ज़ज्बातों को 
पैरों तले रौंदकर 
मैं ………
पथराई आँखों से देखती रही 
और वो 
मेरी नज़रों से ओझल हो गया 
हमेशा के लिए ………… 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 


बदल गया मायने दोस्ती का व्यापर की तरह 
बदल गए  दोस्त भी मतलबी यार की तरह 
--------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत '
badal gaya mayne dosti ka vyaapaar ki tarah 
badal gaye dost bhi matlabi yaar ki tarah 
-----------------------------kamla singh zeenat 

Tuesday 27 August 2013

बदल सकता है इंसान,फितरत बदलती नहीं उसकी 
बदलते हालात पर नियत बदलती नहीं सबकी 
----------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 
मोरे अंगना नन्द के लल्ला 
आओ पधारो,करूँ शान रे 
मैं गाऊं,नाचूं,झुमुं,हर पल 
छेड़ो मुरलिया की तान रे 
-----------कमला सिंह 'ज़ीनत' 
देते हैं लोग मिसाल दोस्ती की 
सुदामा और कृष्ण के नाम दोस्ती की
आज तक्ख्बूर समझते हैं दोस्ती में 
करते हैं दिलों का व्यापार दोस्ती में 
--------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'  

पलकों के ख्वाब

पलकों से ख्वाब चुनती हूँ मैं 
दिल के जख्मों को सिलती हूँ मैं 
हसरतों के इस सुहाने सफ़र में 
कशीदे जिंदगी के गढ़ती हूँ मैं 

रोज़ जाती हूँ शहर में हसरतों के 
सपने मोल वहां से लाती हूँ मैं 
बनाती हूँ और बिगाड़ती हूँ उनको 
दामन में अपने जड़ती हूँ मैं 

सितारों की मानिंद चमकती हूँ मैं 
टूटे तारों सी बिखरती हूँ मैं 
आता है एक वक़्त ऐसा भी सफ़र में  
तस्कीन जिंदगी का कज़ा में ढूंढ़ती हूँ मैं 
-------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
जिंदगी के पन्नों में कई नाम अचानक जुड़ते है ताउम्र के लिए  
निभाने वाले सभी नहीं,कोई एक होता है,इतिहास के पन्नों में अंकित 
----------------------------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'' 
जिंदगी के हादसों में कई हादसे होतें हैं उनमे एक है दोस्ती 
दगा जिसने भी दिया,सगा वो फिर खुद का भी ना हुआ  
----------------------------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 
इंसान बदलता है मौसम में शान के 
इतफाक नहीं होता,ये होता है जान के
हम भी बदल जाएँ गर मौसम की तरह 
कहलायेंगे हम बेवफा इश्क में मान के
---------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Insaan.badalta hai,mausam me shaan ke
itefaak nahi hota,ye hota hai jaan ke
ham bhi gar badal jaayen gar mausam ki tarah
kahlaayenge bewafaa ishq me maan ke
--------------------------------kamla singh
मौसम भी गर करवट ले इंसान की तरह 
बेपरवाह हो जाये गर हैवान की तरह 
सोचो हश्र क्या होगा हम इंसानों का धरा पे 
धरा पे इंसान हो जाये शैतान की तरह 
-------------------------------कमला सिंह ज़ीनत

मैं और दुनिया

---------मैं और दुनिया ------
---------------------------------
अजीब दुनिया है 
दिल के दर्द को भी नहीं समझती 
पता नहीं है क्यों ?
ये किस मिटटी के बने है ?
मालूम नहीं 
शायद इनमे दिल ही नहीं। . 
वर्ना ये क्यों करते ऐसी बात 
सोचती हूँ मैं अक्सर 
क्या ये पत्थर से बने हैं ?
या इनमे दिल ही नहीं 
हो सकता है मेरी तरह ये बेवकूफ नहीं 
मुझसे ज्यादा अच्छा जानते हों 
नहीं …………… नहीं नहीं 
सारे  ऐसे नहीं हो सकते 
कुछ तो ज़ज्ब भी रखते होंगे
इंसानियत और प्यार भी होगा 
पर क्यों ?
क्यों पत्थर से दीखते हैं …… 
कही ऐसा तो नहीं की  ……………। 
मैं पागल हूँ.…… 
नहीं ऐसी तो नहीं मैं. 
फिर कोई क्यों नहीं समझता मुझे ?
अपनों की नज़रें भी 
कुछ ऐसी ही घूरती हैं 
जैसे कोई खता हो गयी मुझसे 
क्या करू ?
मैं पत्थर से नहीं बनी 
इंसान हूँ मैं 
मैं नहीं छोड़ सकती 
नहीं छोड़ सकती अपनी फितरत 
मैंने  सीखा है यही 
प्यार देना और प्यार लेना 
और विधाता भी यही चाहता है 
मुझसे 
हमेशा ……………… 
अनवरत……………   
-----------------कमला सिंह ज़ीनत 


Monday 26 August 2013

जिगर में टाँके की सूरत तू मुझसे लिपटा है
ज़रा भी टूटा तो एक पल भी जी ना पाऊँगी
------------------------------कमला सिंह ज़ीनत
-Jigar mein taanke ki surat tu mujhse lipta hai
Zra bhi tuta to ek pal bhi ji na paaungi
--------------------------kamla singh zinat
मैं तुझे इतना मानती हूँ ए दोस्त 
बोल दूँ तो कलेजा फट जाये 
---------------कमला सिंह ज़ीनत 
Main tujhe itna maanta hun aye dost Bol dun to kalejaa phat jaaye
----------------kamla singh zeenat

दोस्त-

------------दोस्त----------------
---------------------------------------
आज मैं रोई 
बहुत रोई। ……. ख़ुशी से 
और तुमने रुलाया 
तुम्हारे प्यार ने 
तुम्हारी दोस्ती ने 
तुम्हारे ज़ज्बात ने 
एक सुकून सा मिला दिल को 
जैसे तपती धरती को बारिश की बूंदें 
थके मुसाफिर को तरुवर की छाया,
हाँ 
सच में ………. सच कह रही हूँ मैं 
तुम नहीं जानते 
मैंने तुमको महसूस किया है 
मेरे अन्दर 
मेरे रूह में 
तुम हमेशा साथ चलते हो मेरे 
मेरी परछाई की तरह 
एक अजीब सा सुकून 
अजीब सा सुकून मिलता है मुझे 
तुम्हारे एहसास से 
तुम्हारे ज़ज्बातों के छुअन से 
जैसे मैं तुममे जीती हूँ 
और तुम मुझ में 
सच है ना ?
बोलो न ?
मैं रूह में बसी हु तुम्हारे 
शायद पिछले जनम का रिश्ता है 
वरना आज तो ……… 
आज तो खून भी अपना नहीं 
बहुत प्यार करती हूँ तुम्हें 
एक प्यारे दोस्त हो तुम 
जिसको मैं जीती हूँ 
हर पल महसूस करती हूँ 
तुम्हारी पीड़ा मुझे नहीं देखी जाती 
सुनो ……… 
कुछ बोलूं मैं ?
मेरे दिल की बात भी  है  
मुझे अकेला न छोड़ जाना 
मर जाउंगी मैं तुम्हारे बगैर 
आज तक पीड़ा ही मिला है 
जिंदगी में मुझे …। 
लेकिन तुम नहीं दोगे 
जानती हूँ मैं
विश्वास है मेरा  
क्यों ? 
क्या तुम नहीं जानते ?
बताऊ ……………?
क्योकि  
तुम में मैं .हूँ ………… 
और मुझ में तुम.…………….  
----------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
aaj main royi 
bahut royi .........khushi se 
tumhare pyaar ne 
tumhari dosti ne 
tumhare zazbaat ne 
ek sukun sa milaa dil ko 
jaise tapti dharti ko barish ki bunde 
take musafir ko taruwar ki chhayaa 
haan.......... 
sach mein................. sach kah rahi hun main 
tum nahi jaante 
maine tumko mahsus kiya hai 
mere andar 
mere ruh men 
tum hamesha sath chalte ho 
meri parchhyin ki tarah 
ek ajeeb saa sukun 
ajeeb sa sukun miltaa hai mujhe 
tumhare ehsaas se 
tumhare zazbaaton ke chhuan se 
jaise main tumme jiti hun
aur tum mujh mein
sach hai na ?
bolo naa ?
main ruh mein basi hun tumhare 
shayad pichhale janam ka rishtaa hai 
varnaa aaj to......... 
aaj to khun bhi apna nahi 
bahut pyar karti hun tumhen 
ek pyare dost ho tum 
jisko main jiti hun 
har pal mahsus karti hun 
tumhari peeda mujh nahi dekhi jati 
suno..... 
kuch bolu main ?
mere dil ki baat baat bhi hai 
mujhe akelaa na chhod jana 
mar jaungi tere bagair 
aj tak peeda hi miloa hai
zindgi me mujhe .............
lekin tum nahi doge 
janti hun main 
vishwas hai meraa 
kyto ?
kya tum nahi jante ?
bataaun.........
kyoki 
tum men mai hun ......
aur mujh mein tum...
------------------------kamla singh zeenat 

-आओ न -

----------आओ न ---------
----------------------------------
चारों ओर ,छायी है घनघोर घटा
दिल में बिछ चुकी है
उमंग की चादर
हो रहा है मुझमें भी कुछ बदलाव सा
एक बच्ची प्यार की
ले रही है अंगडाईयाँ मेरे अन्दर
मेरी  फिक्र
मेरा ध्यान
ले जा रहा है खिंच कर तेरी यादों के सफ़र पे
फिर से -हाँ -फिर से
कर रहा  है भीगने का मेरा मन
झमाझम बारिश में
उठने वाले बुलबुलों के फुटन से
फुट रहा है
प्यार का संगीत
झमाझम -उफ़- झमाझम
बारिश -हाँ - बारिश
देखो ना
आओ
आ जाओ
बना  रही हूँ उन यादों के
महकते कागज़ से
इक नाव ………………………….
आओ ना
हम दोनों बैठेंगे पाल के नीचे
और निकल जायेंगे दूर तलक
धार के साथ
प्यार के साथ
आओ ना ……………………
आओ ना……………… ….
--------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Sunday 25 August 2013

-सुनो --

-----सुनो ---------
--------------------------
सुनो 
सुनो आज मैंने देखा था 
तुम्हें देखा 
सच ………  
चले जा रहे थे 
अपनी धुन में 
अपनी ही मस्ती में 
तुम्हारे चेहरे पर कहीं कोई शिकन नही 
ना ही पछतावा था 
तब थोड़ा दुःख हुआ 
सोचा मैंने 
क्या तुम वही हो ?
जिसने कभी वादा किया था 
मुझसे ………. 
हाँ … हाँ …… मुझसे 
लेकिन  तुम्हें याद भी नहीं 
और मैं 
मैं आज भी तुम्हें जीती हूँ 
कितने स्वार्थी हो तुम ?
कितने बेपरवाह निकले 
मैं मिसाल देती थी 
तुम्हारा और किसका ?
जानते हो क्या ?
तुम्हारे सच्चे प्यार का 
बड़ा गुरुर था मुझे …… 
खुद पे 
तुम पे 
लेकिन झुठ …… 
सब झूठ ………. 
बेकार की बातें हैं 
सबकी बातें नहीं मानी ,मैंने 
कभी नहीं ……………… 
मुझे लगता था की तुम 
अपनी जान से ज़्यादा 
मानते हो मुझे 
प्यार करते हो 
आज देखा तुमको 
अपने खुद की आँखों से 
तुम्हारा चेहरा 
और उसकी असलियत 
जो कर ही नहीं सकता था किसी से प्यार 
कभी नहीं 
दुःख है मुझे 
दुःख ही नहीं ,पछतावा भी है 
बहुत…………. 
मैंने किसे चुना 
अच्छा हुआ मैंने जाना तो 
क्या ? क्यों घुर रहे हो ?
चले जाओ 
चले जाओ यहाँ से 
वाकिफ हूँ मैं 
पता है मुझे सच और झूठ का 
जाओ तुम………… 
हमेशा के लिये…………
-----------कमला सिंह ज़ीनत  
suno 
suno aaj dekha tha 
tumhe dekha 
sach...........
chle jaa rahe the
apni dhun mein
apni masti mein
tumhare chehre par koi shikan nahi 
naa hi pachhtaavaa thaa
thoda dikh hua 
socha maine 
kya tum wahi ho ?
jisne kabhi vaada kiya tha
mujhse............
haan......haan..........mujhse 
lekin tumhen yaad nahi 
aur main 
main aaj bhi tumhen  jiti hun
kitne swarthi ho ?
kitne beparwaah bhi nikle 
mai misaal deti thi 
tumhaara aur kiska ?
jaante ho kya ?
tumhare sachhe pyar kaa 
bada gurur thaa mujhe.........
khud pe
tum pe 
lekin jhuth.........
sab jhuth....
bekaar ki baaten hain
sabki baten nahi maani ,maine
kabhi nahi 
dukh hai mujhe 
dukh hi nahi pachhtaavaa bhi hai 
bahut...........
maine kise chuna 
achha hua maine jaana to .
kya ? kyu ghur rahe ho ?
chle jao 
chle jao yahaan se 
wakif hun main 
pataa hai mujhe sach aur jhuth ka 
jaao tum...........
hamesha ke liye.......
----------------kamla singh zeenat  

हार

बेचैन बादलों को देखा 
बेचैन। ………। बहुत बेचैन 
बरसने को बेताब 
और मैं ……… 
मैं देखती रही … 
देखती रही बरसती  बूंदों को 
याद आया मुझे 
वो रात 
वही रात जब  तुम 
घर के बाहर रात भर ….
सारी रात 
सारी रात भीगते रहे 
पूछते हो क्यों ?
क्या याद नहीं ?
मुझसे इकरार की उम्मीद में 
तुम भीगते रहे 
बीमार भी हो गए 
पर नहीं गए वहां से 
और मैं। …………… 
मैं हार गयी 
तुम्हारे जिद के आगे 
बड़े भुलक्कड़ हो 
खैर। …… अरी 
क्यों सोचती हूँ तुमको 
बारिश आई और चली भी गयी बरस कर 
पर अब तक नहीं गयी ………………। 
नहीं गयी तुम.…  
और तुम्हारी यादें 
जो अक्सर चली आती हैं 
अपने यादों की अर्थी लेकर 
मेरे ज़ेहन में 
और मुझे बेचैन कर चली जाती हैं 
बरस कर 
उन बेचैन बादलों के साथ 
फिर से वापस आकर बरसने के लिए 
जो अक्सर मेरे पास आया करती हैं 
तन्हाईयों में.……………… 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत  
bechain baadlon ko dekha 
bechain ........ bahut bechain 
barsane ko betaab 
aur main ............. 
mai dekhti rahi ....
dekhti rahi barsati bundon ko 
yaad aayaa mujhe 
wo raat 
wahi raat jab tum 
ghar ke bahar raat bhar ...
saree raat 
saree raat bhigte rahe 
puchte ho kyu ?
kya yaad nahi ?
mujhse ikraar ki ummid mein 
tum bhigte rahe 
bimaar bhi ho gaye 
par nahi gaye wahaa se 
aur main ........
main haar gayi 
tumhare zid ke aage 
bade bhulakkad ho 
khair .... aree 
kyu sochti hun tumko 
barish aayi aur chli bhi gayi baras kar 
par ab tak nahi gayi.......... 
nahi gayi tum.........
aur tumhari yaaden
jo aksar chli aati hain 
apne yaadon ki arthi ko lekar 
mere zehan mein 
aur mujhe bechain kar chli jaati hain 
baras kar 
un bechain baadlon ke sath 
phir se wapas aakar barsane ke liye 
jo aksar mere pas aayaa karti hain
tanhaayiyon mein ...........
----------------------kamla singh zeenat 

किसका इंतज़ार -------------------------

किसका इंतज़ार 
----------------------------
क्या सोचते हो ?
मैं इंतज़ार करती हूँ तेरा ?
नहीं। …… कभी नहीं 
क्यों करूँ मैं इंतज़ार 
कौन हो तुम? 
कौन हो मेरे? 
क्यों पूछते हो ये सवाल ?
खुश हूँ मैं 
मत जाओ मेरी आँखों पर 
वो हमेशा झूठ बोलती हैं 
और मैं। …………… 
सच.…  
हमेशा सच
तभी तो गिला है मुझसे 
तुमको ही नहीं 
सारी दुनिया को है 
चले जाओ 
चले जाओ मेरे तसव्व्वुर से 
मेरे ख्यालों से 
नहीं है प्यार 
नहीं करती हूँ इंतज़ार 
तनहा छोड़ दो मुझे 
मेरे तन्हाईयों के साथ 
चले जाओ 
चले जाओ मेरे दिल से 
कभी ना आने के लिए 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 
 kya sochte ho ?
main intzaar karti hun teraa ?
nahi .......... kabhi nahi 
kyu karun mai intzaar 
kaun ho tum ?
kaun hoo mere 
kyu puchte ho ye swaal ?
khush hun main 
mat jaao merii aankhon par 
vo hameshaa jhuth bolti hain 
aur main ............... 
sach 
hameshaa sach 
tabhi to gilaa hai mujhse 
tumko hi nahi 
sari duniyaa ko hai 
chale jao 
chle jao mere tasawwur se 
mere khayaalon se 
nahi hai pyar 
nahi karti hun intzaar 
tanhaa chhod do mujhe 
mere tanhaayiyon ke sath 
chle jao 
chale jao mere dil se 
kabhi na aane ke liye 
----------------kamla singh zeenat 

उफ़ वो दिन

उफ़ वो दिन  --------------
----------------------------
उफ़ वो दिन.……………
नहीं जाता मेरे ज़ेहन से 
बार-बार करता है चहलकदमी 
मेरे तसव्वुर के लान में 
उफ़ वो दिन  ………
जब भी याद करती हूँ 
सिहर जाती हूँ 
हो जाती हूँ 
रोमांचित 
मेरे अन्दर के सारे ग़म 
सारा दुःख 
सारी तकलीफें 
पल भर में अपना बिस्तर लपेट लेती हैं 
हो जाती हूँ मैं सुगन्धित 
महक उठती हूँ मैं 
मोगरे सी 
उफ़ वो दिन …………. 
आये थे तुम 
मुझसे मिलने 
मुझे देखने की धुन में 
टकराए थे तुम
लडखडाये थे तुम  
कालीन के किनारे में फंसकर 
और गिरते-गिरते बचे थे 
उफ़ वो दिन …………। 
तुम्हारी सकपकाहट पर 
जो खुलकर हंसी थी मैं 
पहली बार जीवन में
हाँ पहली बार 
बड़े दिनों के बाद  
बड़े दिनों के बाद 
उफ़ वो दिन। ……………. 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 
तेरी जिंदगी का वो हसीं लम्हा हूँ जिसे तू न भूल पायेगा 
मेरी जिंदगी का तू वो खुबसूरत गम है जिसे मैं ना भूल पाऊँगी 
------------------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

teri zindgi ka wo haseen lamha hun jise tu naa bhul payegaa 
meri zindgi kaa tu wo khubsurat gam hai jise main naa bhul paungi 
------------------------------------------------------kamla singh zeenat 

Saturday 24 August 2013

------------ग़ज़ल -----------
--------------------------------
मैं खुद से खुद को भुला बैठी 
दिल जो तुझसे लगा बैठी 

भूल गयी,डगर मंजिल का 
तेरे दर से ही राह मिला बैठी 

नशा होता है क्या इश्क का 
आँखों को जाम पिला बैठी 

बंदगी इश्क में तेरे यार मैं  
दिल का चमन खिला बैठी 

अंजाम-ए-इश्क में हासिल 
अश्कों से दामन भीगा बैठी 
--------------कमला सिंह ज़ीनत  

------------तमाशा ----------
--------------------------------------
देख रही हूँ मैं 
गौर से 
तुम्हार ही तमाशे को 
दिल से जुबां तक 
जुबां से लब तक 
आ ही गए तुम 
अपनी औकात पे 
देख रही हूँ मैं तेरा 
नाटक ?
तेरा स्वांग ?
तेरी उछल कूद 
उस नीम की डाली पर 
लगा रहे हो फंदा 
कर रहे हो मर जाने का एलान 
मेरे मुहल्ले 
मेरे घर के सामने 
देख रही हूँ 
सहमी थी मैं ?
डरी  थी मैं ? 
पर -----------
कुछ पल के लिए 
जब तुम ही उतर आये 
बेहयाई की दहलीज़ तक 
करने को हो गए तैयार 
मुझे बदनाम 
फिर रहा क्या 
प्यार का पंछी 
अभी शर्म से दम तोड़ गया 
निकल गया मेरे अन्दर का डर 
लगा लो 
शौक़ से लगा लो 
फंदे गले में 
देख रही हूँ मैं भी
 तमाशा
देखना भी है मुझे 
होती है कैसे 
बे-गैरत ,बेवफा 
बे मरव्वत 
आशिक की मौत 
देख रही हूँ मैं 
तमाशा 
देख रही हूँ   
-----------कमला सिंह 'ज़ीनत'
Tamasha .................................. Dekh rahi hun main Gaur se Tumhare hi tamashe ko Dil se zubaa'n tak Zubaa'n se lab tak Aa hi gaye tum Apni auqaat pe Dekh rahi hun mai tera Naatak.? Tera swaang.? Teri uchchal kuud Us neem ki daali par Lagaa rahe ho fanda Kar rahe ho mar jane ka ELAAN Mere muhalle Mere ghar ke saamne Dekh rahi hun Sahmi thi main.? Dari thi main.? Par............ Kuchch pal ke liye Jab tum hi utar aaye Behayaayi ki dahleezz tak Karne ko ho gaye tayyar Mujhe badnaam Phir rahaa kya........ Pyaar ka panchchii Abhi sharm se dam tod gaya Nikal gaya mere andar ka Dar.......... Lagaalo shauq se lagaalo Phanda gale mein Dekh rahi hun main bhi Tamaasha Dekhna bhi hai mujhe Hoti hai kaise Be gairat be wafaa Be marawwat Aashiq ki maut Dekh rahi hun main Tamasha Dekh rahi hun.
लफ्ज़ गुम हो गए कही पे 
शायद जम गए यही पे 

ना रंग है ना रूप कोई 
शायद छुप गए कही पे 

फिरती हूँ इधर-उधर 
मिल नहीं रहे कही पे 

जाऊ तो जाऊ कहाँ ढूंढने
अब तो आ जाओ यही पे 

बिन तुम्हारे सब सूना है 
जिंदगी टिकी है तुम्ही पे 

ज़ीनत को भी ए दोस्त

 रश्क है खुद पे 
----------------कमला सिंह 'ज़ीनत '

Friday 23 August 2013

दिल में आग लगी बुझ ना सकी आज तलक 
आंसुओं ने भी बुझाने की बहुत कोशिश की 
-----------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Dil mein aag lagi bujh na saki aaj talak Aansuon ne bhi bujhane ki bahut koshish ki
----------------------------------kamla singh zeenat

मेहरबान होता नहीं कोई बुरे मौसम में 
मैंने हर हाल को नज़दीक से जी कर देखा 
--------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 
Mehrba'n hota nahi koi bure mausam mein Main ne har haal ko nazdeek se ji kar dekha
------------------------------------kamla singh 'zeenat'
आप सब हैं तो शख्सियत है मेरी 
आप सब नहीं तो मैं कुछ भी नहीं 
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

बिन तेरे कहाँ चल पाऊँगी जिंदगी की राह पे 
तनहा सफ़र कटता नहीं बिन दुआ के आपके 
----------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत '

bin tere kahan chal paungi main zindgi ki raah pe 
tanhaa safar kattaa nahi nahi bin duaa ke aapke 
---------------------------------------kamla singh 

इंसान भी बदलता है मानिंद मौसम के 
इतफाक नहीं होता,ये होता है जान के
हम भी बदल जाएँ गर मौसम की तरह 
कहलायेंगे हम बेवफा इश्क में मान के 
---------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

insaan bhi badlataa hai manind mausam ke 
itefaak nahi hota,ye hota hai jaan ke 
ham bhi gar badal jaayen gar mausam ki tarah 
kahlaayenge bewafaa ishq me maan ke 
--------------------------------kamla singh