Saturday 31 May 2014

जीते हैं बा-शऊर बड़ी आन बान से
हर रोज़ ये निकलते हैं साहस की खान से
ठहरो ज़रा दिखाती हूँ जलवा उड़ान का
लौटेंगे मेरे पंछी अभी आसमान से 
---कमला सिंह 'ज़ीनत '
Jeete hain ba shauur badi aan baan se
har roz ye nikalte hain sahas ki khaan se
thahro zara dikhati hun jalwa udaan ka
lautenge mere panchchi abhi aasmaan se
--kamla singh 'zeenat'

Friday 30 May 2014

देखो 
अमर्यादित शब्दों के साहूकारों 
मत फैलाओ फूलों की मंडी में गंध 
हवा के होने पर पूरी तरह से ज़हरीला 
मर जाओगे हवा के सर सर से ही
देखा है कभी ?
अपने अन्दर गुरुत्वाकर्षण को कम होते ? 
बावले पन की तराजू पर सम्मान का तौल नहीं हो सकता 
नहीं नहीं नहीं 
कभी नहीं कभी नहीं 

कमला सिंह 'ज़ीनत'
कत्ल ए आम
________________________
ढल चुकी है शाम
हो रहा है अंधेरा
पहाड़ियों से उतर रहे हैं बे-ज़बान जीव
झूंड में शामिल हैं कुछ भेडिये भी
तराई तक आते आते हो चुका होगा स्याह अंधेरा
फैल रहे हैं भेडिये मंसूबों के साथ
हर चाल और हर बिसात पर कर रहे हैं कब्जा
होगा बहुत शातिर तरीके से झूंड पर हमला
केवल भौंकेंगे भेडिये
डर जायेंगे जीव
मचेगी भगदड
और कुचल कर एक दूसरे को
मर जाएंगे बे-शुमार जीव
होगी जब सुब्ह
मुजरिम अपनी नाखून दिखाएंगे
भेडिये पारसा कहलाएंगे
कमला सिंह 'ज़ीनत'

Thursday 29 May 2014

चंद लम्हों की तो बात है 
जाने क्या मिले सौगात है 
उम्र भर की चाहतों का 
थोड़ी मिली मुलाक़ात है 
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

दिल का दर्द कुछ कम नहीं होता 
आँख यूँ हर वक़्त नम नहीं होता 
आदत है उन्हें दिल्लगी करने की 
वरना दिल को कोई ग़म नहीं होता
------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

Wednesday 28 May 2014

टुट जायेंगे यकीनन वह सारे शीशे के बुत इक धमक काफी है लफ्जों को जो जुंबिश दे दूँ
कमला सिंह 'ज़ीनत'

यूँ तो रुखसार ही होते हैं किताबी पन्ने
दीदवाले तो मोकम्मल ही पढ़ा करते हैं
---कमला सिंह 'ज़ीनत'


मुझको दीवारों में जड़ दे
या फिर मुझको पागल कर दे
आँखें मेरी सूख चुकी हैं
चल तू आँख में आंसू भर दे
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Saturday 24 May 2014

उन्वान*****रस्म,रीति ,रिवाज
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कोई ऐसा है कोई वैसा है
हर तरफ सिर्फ पैसा पैसा है
जी रहे हैं सभी परिशाँ से
रस्म क्या है रिवाज कैसा है
कमला सिंह 'जीनत'

Friday 23 May 2014

बेवजह शोर शराबा कोई आवाज़ न कर
गर हो अंजाम का डर तुझको तो आगाज़ न कर
आसमानों को बलंदी का ना हो जाए घमंड
दम ना हो पर में मयस्सर तो फिर परवाज़ न कर
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

be wajah shor sharaba koi aawaaz na kar gar ho anjaam ka dar tujhko to aagaaz na kar aasmaano ko balandi pe na ho jaye ghamad dam na ho par me mayassar to phir parwaaz na kar
---Kamla Singh 'zeenat'
-----------इश्क --(नज़्म)---------
लफ्ज़ ये इश्क मोअत्त्बर है बहुत 
कोई चाहे तो कर नहीं सकता 
कोई चाहे तो इश्क होता नहीं 
सबकी किस्मत में इसका रंग नहीं 
सबके दामन में नूर इसका नहीं 
सबके लकीरों में ये नहीं लिखा 
इश्क अल्हड़ है,बावला है ये 
जिसको होता है,सो नहीं सकता 
रोना चाहे तो,रो नहीं सकता 
इश्क रब से हो तो,मूसा कर दे 
इश्क रब से हो तो,ईसा कर दे 
ऐशकरनी करे,किसी को इश्क 
कोई बन जाती है मीरा पल में 
लाख मंदिर में कोई सेवा करे 
लाख मस्जिद में दे अज़ान कोई 
लाख मेवा चढ़ाये ईश्वर को 
लाख सजदे में गिर पड़े कोई 
इश्क करने से हो नहीं सकता 
इश्क का बीज बो नहीं सकता 
जब कोई इश्क में खो जाता है 
इश्क ही इश्क वो हो जाता है 
इश्क ही इश्क वो हो जाता है 
----कमला सिंह 'जीनत'
***************************
.............ESHQ....................
...........................................
lafz ye eshq moattbar hai bahut
koi chaahe to, kar nahi sakta
koi chaahe to, eshq hota nahi
sabki qismat mein, iska rang nahi
sabke daaman mein, noor iska nahi
sab lakiron mein, ye nahi likkhaa
eshq allardh hai, baawlaa hai ye
jisko hota hai, so nahi sakta
rona chaahe to, ro nahi sakta
eshq rab se ho to, musaa karde
eshq rab se ho to, Esaa kar de
Aishh karni kare, kisi ko eshq
koi ban jaati hai, meera pal mein
laakh, mandir mein koi sewaa kare
laakh, masjid mein de azaan koi
laakh, mewaa chadhaaye ishwar ko
laakh, sajde mein gid pade koi
eshq karne se ho nahi saktaa
eshq ka beejj, bo nahi sakta
jab koi eshq mein, kho jata hai
Eshq hi eshq wo, ho jataa hai.
Eshq hi eshq wo,ho jataa hai

kamla singh zeenat.
------(nazm) इश्क--------------
इश्क इक फूल है एहसास ए चमन का यारो जब भी खिलता है तो इक खुश्बू बिखर जाती है बागबानो में हर इक सिम्त निखार आता है तितलियां रंग ए जुनूं पर पे लिये फिरती हैं भौंरे इक राग ए सुकूं गाते निकल पडते हैं स्याह रात चिरागां किये जुगनू सारे महफिल ए इश्क में जगमग किये बल खाते हैं इश्क न होतो यह सुनसान है दुनिया सारी इश्क बंदे की हकीकत है ज़माने भर में इश्क भगवान को भगवान बना देता है इश्क अल्फाज़ में दौड़े तो पयम्बर कर दे इश्क हो कैस को सहरा में वह पत्थर खाए इश्क हो शाह को तो ताजमहल बनवा दे इश्क आबिद को अगर हो तो मलंगा कर दे इश्क फन्कार को हो जाए तो कुछ खास करे इश्क मुझको भी हुआ शेरो सुखन से क्या बात इश्क ही इश्क मेरी रुह में शामिल दिन रात
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'
याद रखना बेवजह उस याद को फितरत नहीं 
जिससे मेरी कोई भी हर हाल में निस्बत नहीं 
दिल को समझाती रही वह भूल जाए सारी बात
और यह इक दिल है कि इस बात पे सहमत नहीं 

Kamla Singh 'zeenat'
हर रोज़ सिलती हूँ यादों के पेबंद को
रोज़ ही एक नया सुराख निकल आता है
-----कमला सिंह "ज़ीनत "
याद रखना बेवजह उस याद को फितरत नहीं जिससे मेरी कोई भी हर हाल में निस्बत नहीं दिल को समझाती रही वह भूल जाए सारी बात और यह इक दिल है कि इस बात पे सहमत नहीं Kamla Singh 'zeenat'
Chat Conversation End

Thursday 22 May 2014

$$$GHAZAL$$$$ Bawla hote hai sab had se nikalne wale jal ke mar jate hain suraj ko nigalne wale tan ko rakhte hain qarine se saja kar kuchch log saanp ho jate hain kenchul ko badalne wale dene wale ka karam hota hai jab bandon par chatpata jate hain yeh dekh ke jalne wale thonkro se wahi bach pate hain rahi sun lo thokren kha ke bhi jo honge sambhalne wale dil me rahte hain to khushbu ki tarah rahte hai log kuchch hote hain ehsaan pe palne wale aap zeenat ki karo fikr na aye sahib ji ham to bas hote hain har haal me dhalne wale Kamla Singh zeenat
******ghazal****** Phool tujhsa koi khila na sake tijhko hargiz kabhi bhula na sake ham tere simt badhte jaate hain do qadam tum bhi yaar aa na sake mujhko chodo yunhi tadapne do shola e dil ko tum bujha na sake kya mujhe saath liye jaaoge bojh apna bhi to utha na sake bedhadak aati main teri khatir neend lekin zara uda na sake main barasti rahi sada tujh par aur tum the kabhi naha na sake yun to 'zeenat' aji tarasti rahi geet ulfat ka tum bhi gaa na sake kamla singh zeenat
--------ग़ज़ल------------

ज़ख्म पे ज़ख्म लगा देता है सिलता भी नहीं 
वो मसीहा कि तरह मुझसे तो मिलता भी नहीं 

मैं चली जाती हूँ दामन में बहाराँ लेकर
इतना जिद्दी है वो गुल्शन में कि खिलता भी नही

तल्खियाँ ओढे हुए रहता है पत्थर की तरह
लाख सर मारुँ मैं ऐसा है कि हिलता भी नहीं

रोज़ ताने दे ज़माना मुझे "जीनत" लेकिन
दिल ये फौलाद के मानिंद है छिलता भी नहीं

कमला सिंह "जीनत"
खास टाइप के चैटूओं के लिये
----------------------
न लिखते हो न पढते हो
फकत बातें बनाते हो
फकत किस्से सुनाते हो
फकत इज़हारे माशूकी
फकत बे-बात की बातें 
फकत फिल्मी लबो लहजा
फकत आवारगी शामिल
फकत बेहुदगी शामिल
फकत छिछोरा पन शामिल
फकत डिस्टर्ब रहते हो
फकत डिस्टर्ब करते हो
हवाओं में हवा होकर फकत बातें बनाते हो
ज़हन बीमार है तेरा यहीं खुजली मिटाते हो
न लिखते हो न पढते हो
फकत बातें बनाते हो

-----कमला सिंह "जीनत"
Satya aik hai
---------------------
jaise ki ishwar
jaise ki suraj
jaise ki chand
jaise ki dharti
jaise ki pariwaar
jaise ki main
jaise ki sansar
jaise ki mera pyar
satya aik hai
Bas Aik

Kamla Singh "Zeenat"

Wednesday 21 May 2014

------ग़ज़ल -----
-------------------------------
जब भी आगाज़ ये परवाज़ किया जायेगा 
आसमानों में मुझे याद किया जाएगा 

क़ैद ए बुलबुल पे जो गुज़री है बताने के लिए 
कुछ क़फ़स वालों को सय्याद किया जाएगा 

ज़ुल्म वालों से ना डरना कभी मज़लूमों तुम 
है खुदा फ़रियाद किया जाएगा 

क़त्ल करता है जो जाकर उस से कह दो 
वक़्त आएगा तो बर्बाद किया जाएगा 

उजड़े उजड़े से चमन चुप रहो आहें न भरो 
वक़्त की बात है आबाद किया जाएगा 

शेर महफ़िल में यूँ 'ज़ीनत' तो सुनाती भी नहीं 
ज़ौक़ वाले हों तो इरशाद किया जाएगा 
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'

--------GhAzaL-------

Jab bhi aagaaz ye parwaaz kiya jayega
aasmaano me mujhe yaad kiya jayega

Qaid e bulbul pe jo guzri hai bataane ke liye
kuchch qafas waalon ko sayyaad kiya jayega

zulm waalon se na darna kabhi mazluumon tum
hai khuda koi to faryaad kiya jayega

qatl karta hai jo jakar zara us se kah do
waqt aayega to bardaad kiya jayega

ujde ujde se chaman chup raho aahen na bharo
waqt ki baat hai aabaad kiya jayega

sher mehfil me yun "zeenat" to sunaati bhi nahi
zauq wale hon to irshaad kiya jayega

Kamla Singh "zeenat"

Tuesday 20 May 2014

Shayeri karna mera shauq hai mera fann hai
shayeri ko main tejarat kabhi nahi karti
-----kamla singh 'zeenat'
Ghazal likhne ki chahat ne mujhe masroof kar dala
na din ko chain hota hai na shab bhar neend aati hai
-----kamla singh 'zeenat'
Lafz dar lafz khayalaat ki pankhuriyon se
aik khushbu main basa deti hun har misre me
------kamla singh 'zeenat'
_________GhaZaL_________ Dard hai to sahlaun kaise apna dil bahlaun kaise wo bhi to bhukha hi hoga aise me main khaun kaise khawabon me aata hai pagal bolo neend udaun kaise ishwar ho to sajda kar lun par banda hai paun kaise patthar ki deewar hai duniya is deewar ko dhaun kaise dil pagal hai bachche jaisa Dil ko ab samjhaun kaise zeenat uski yaad hai jaari aise me mar jaun kaise kamla singh zeenat
HaaN wahi ( nazm )

================
HaaN wahi sayebaan hai mera
mere dil me wahi dhadakta hai
usse ulfat hai beshumaar mujhe
uske jaisa koi nahi duja
har taraf uska hi jalwa jalwa
meri saanson me uski khushbu hai
har taraf har jagah wahi qaayem
chaand suraj bhi feeke lagte hain
uske aage koi nahi ab tak
wo akela hai noor jaisa hai
uska jalwa hai zarre zarre me
baadshaahi usi ko aati hai
sare aalam ka shahanshaahh hai wo
main use chaahti hun shaam o sahar
mera sajda usi ke waaste hai
usse rishta hamara pakka hai
bas wahi aik aik sachchaa hai
mere lab pe wahi duaa hai bas
mera waahid wahi khuda hai bas

Kamla Singh zeenat

Saturday 17 May 2014

पुकार इतनी करो कि कोई सदा न रहे
खुदी में डूब यूँ जाओ कि फिर खुदा न रहे
हटा के फेंक दो कमज़र्फ बंदगी अपनी
वगरना ऐसा नशा हो कि फिर नशा न रहे
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
pukaar itni karo ke koi sada na rahe khudi me duub yun jaao ke phir khuda na rahe hata ke faink do kamzarf bandagi apni wagarna aisa Nasha ho ki phir nasha na rahe
मेरी एक और ग़ज़ल  पेश है 
-----------------------------------
उसी की मेहरबानी है,करम है 
मेरी आँखों में पानी है करम है 

वो मुझको भूल जाये गम नहीं है 
कुछ तो उसकी निशानी है करम है 

मेरे अशसार में ए मेरे मालिक 
मुसल्सल इक रवानी है करम है 

मैं पढ़ते रहती हूँ दिन रात जिसको 
कोई  जिंदा  कहानी है करम है 

कहाँ तक उसको जीते हम बताओ 
ये दुनिया आनी जानी है करम है 

ए 'ज़ीनत' दिल पे जिसके राज़ तेरा 
वही  एक  राजधानी  है  करम है 
------कमला सिंह 'ज़ीनत'
हर दिन वो नयी सुब्ह मुझे देता  है पागल 
खुशियों के फूल चुनती हूँ बस ज़िंदगी तमाम
-----कमला सिंह 'ज़ीनत' 
मेरी यादों की बस्ती में  चली आई सुनामी थी 
तेरे एहसास की हर चीज़ को बर्बाद कर गुज़री 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Thursday 15 May 2014

किसी ने लिक्खा गंगा जल ,किसी ने लिक्खा एक एक पल 
मैंने उस पागल को लिक्खा ताज महल बस ताज महल 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Kisi ne likkha ganga jal kisi ne likkha ek ek pal
main ne us pagal ko likkha taj mahal bas taaj mahal
----kamla singh 'zeenat'
-----------ग़ज़ल-----------
---------------------------------
खुद को शाहाकार कीजिये ,ज़िंदगी से प्यार कीजिये 
जब तलक ना मंज़िलें  मिलें ,खुद पे ऐतबार कीजिये 

इश्क़  के  बाज़ार  में कहीं आबरू  लुटा ना आईये 
अपने वालिदेन  के लिए खुद को  पायेदार कीजिये 

फूल बन खिलेंगे एक दिन,खुशबुएँ  बसेंगी आपमें 
गुलिस्ताँ  में सुर्खरु खड़े रुत का इंतज़ार कीजिये 

हम सभी में है जला रहा नफरतों की आग,कौन है 
है छुपी हुयी  दरिंदगी  ढूँढ़  कर  शिकार  कीजिये 

है  फ़िज़ा-फ़िज़ा  में गंदगी,घुट रहा है दम हर एक का 
फूल फूल बन के आप सब बादे नव बहार कीजिए

 मशविरा है जीनत का,मसअला ये जिंदगी का है
ज़िंदगी है कीमती  बहुत इसको  बावकार कीजिये 

--------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Wednesday 14 May 2014

मोहब्बत लफ्ज़ मैंने अध खिली कलियों पे बस लिखा 
गज़ब जादू हुआ कलियों ने बाहें खोल दीं खुल कर 
------------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Mohabbat lafz main ne adh khili kaliyon pe bas likkha gazab jadu huwa kaliyon ne baahen khol din khul kar

Saturday 10 May 2014

नज़म--ऐ ग़ज़ल ऐ मेरी शाने ग़ज़ल ऐ मेरी रुहे ग़ज़ल ऐ मेरी हुस्ने ग़ज़ल ऐ मेरी सोजे तलब ऐ मेरी साजे तलब ऐ मेरी रंगे तलब ऐ मेरी होशे तलब ऐ मेरी आहे जाँ ऐ मेरी राहे जाँ ऐ मेरी जाने जाँ तुझसे उल्फत ही मेरे जीने का मकसद वाहिद बस तेरे होने से कायम है यह उल्फत वाहिद ऐ ग़ज़ल मेरी ग़ज़ल कमला सिंह जीनत

Friday 9 May 2014

मैंने इक  मूरत को इतना पूजा है कि जाकर अब 
तन्हाई में बैठ के मुझसे दिल का हाल सुनाता है 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Thursday 8 May 2014

ऐ ग़ज़ल -एक नज़म 
**********************
ए ग़ज़ल बैठ मेरे सामने तू 
मैं सवारुंगी तुझे 
मैं निहारूंगी तुझे 
मैं उभारुंगी तुझे 
ए ग़ज़ल मेरी ग़ज़ल 
ए मेरी शान ए ग़ज़ल 
ए मेरी रूह ए ग़ज़ल 
ए मेरी फिक्र ए ग़ज़ल 
ए मेरी जान ए ग़ज़ल 
ए मेरी जश्न ए ग़ज़ल
ए मेरी सुभ ए ग़ज़ल 
ए मेरी सोज़ ए ग़ज़ल 
ए मेरी साज़ ए ग़ज़ल 
तेरे बिन चैन कहाँ 
तेरे बिन जाऊं कहाँ 
तू मेरी दिल की सुकून 
तू ही धड़कन है मेरी 
तू ही साँसों में बसी 
तू ही एहसास मेरी 
तू ही ज़ज्बात मेरी 
तू ही आगाज़ मेरी 
तू ही अंजाम मेरी 
ए मेरी शान ए ग़ज़ल 
ए मेरी जान ए ग़ज़ल 
आ मेरे सामने बैठ 
मैं सवारुंगी तुझे 
मैं सवारुंगी तुझे  
-कमला सिंह 'जीनत' 

Tuesday 6 May 2014

एक मतला एक शेर
++++++++++++++
इश्क़ की दास्तान क्या लिखिए
जो भी है दरम्यान क्या लिखिए
बात दिल तक पहुँच ही जाती है
फिर भला ये उड़ान क्या लिखिए
----कमला सिंह 'ज़ीनत

Esq ki daastaan kya likhiye jo bhi hai darmiyaan kya likhiye baat dil tak pahuch hi jati hai phir bhala ye urdaan kya likhiye
----kamla singh 'zeenat'
एक मतला एक शेर 
**************************
पहले ये मुझको बता दे जरा की तू क्या है
फूल है तू तो बता दे मुझे खुश्बू क्या है
इतना पोशीदा तेरा हाल है तो बोल ज़रा
जो छुपाता है बहरहाल रु-ब -रु क्या है
-----कमला सिंह 'ज़ीनत

Pahle ye mujhko bata de zara ke tu kya hai phool hai tu to bata de mujhe khushbu kya hai itna poshida tera haal hai to bol zara jo chchupa ta hai baharhaal ru ba ru kya hai
--------------kamla singh 'zeenat'

Monday 5 May 2014


मरे डरे से सिसकते से बाम दर के चराग़
हमारे होते तो हम फूंक कर बुझा देते
------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Mare dare se sisakte se baam dar ke charaag hamaare hote to ham fuunk kar bujha dete ----kamla singh 'zeenat'




हाथों को फैलाए हुए मैं तेरे दर पे आई हूँ 
फूलों का गुलदस्ता यारब साथ में अपने लायी हूँ
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Haathon ko failaaye huwe main tere dar pe aayi hun phulon ka guldasta yarab saath me apne laayi hun
----------kamla singh 'zeenat'

Sunday 4 May 2014

देखिये माजरा यही तो है 
*********************
ज़ख़्म है सबके सीने सीने  में
हर तरफ़ खुदनुमायी अपनी है 
सारे रिश्ते हवा हवाई हैँ 
ख़्वाहिशें तड़फड़ाने लगती हैं 
लम्बी चौड़ी है बहस बाजी बस 
कौन किसकी यहां पे सुनता है 
अब शायद अदब का हिस्सा है 
सबको अपनी पड़ी है उठने की 
हर तरफ़ कांव कांव है केवल 
सब फ़क़त झाँव झाँव है केवल 
बून्द दरिया को कोसती है यहाँ 
और दरिया ने झील को कोसा 
झील ने कोसा है समुंदर को 
बस यही हो रहा है क्या कहिये 
देखिये माजरा यही तो है 
देखिये माजरा यही तो है 
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

Dekhiye majra yahi to hai ************ zakhm hai sabke sine sine mein har taraf khudnumayi apni hai sare rishte hawa hawayi hain khwahishen tadfadane lagti hain lambhi chaudi hai bahas baji bas kaun kiski yahan pe sunta hai ab syasat adad ka hissa hai sabko apni padi hai uthne ki har traf kaawn kaawn hai kewal sab faqat jhaawn jhaawn hai kewal bund dwariya ko kosti hai yahaan aur dariya ne jheel ko kosa jheel ne kosa hai samundar ko bas yahi ho raha hai kya kahiye dekhiye maajra yahi to hai dekhiye maajra yahi to hai

Saturday 3 May 2014

आसरे की बग्गी 
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सुना था एक गरीब को 
दिया था त्रिलोकिया ने 
आसरा 
अपने घर के 
सुनसान कोनहट्ठे में 
वो दिन भर 
माँगा करती थी भीख 
गाँव जवार में। 
सुना  था, 
उसके मरते ही 
उसकी गुदड़ी से 
निकले थे बहुत सारे सिक्के 
चाँदी और सोने के 
गठरी और गुदड़ी के बीच 
त्रिलोकिया और त्रिलोकी सेठ के बीच 
बड़े शान से गुज़रती थी 
एक आसरे की बग्गी 
सुना था, 
हाँ,
मैंने सुना था। 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'