मेरी एक ग़ज़ल हाज़िर है दोस्तों
------------------------------------------
बुज़दिल थे जो परिंदे बलंदी से डर गए
परवाज़े एख़्तेताम से पहले ही मर गए
दिल में उतरने वाले की सूरत तो देखिये
इतने थे जल्दबाज़ कि दिल से उतर गए
मैंने सफ़र शुरू किया तो हौसले के साथ
हमराह कुछ बिछड़ गए कुछ अपने घर गए
कश्ती हमारी देख के तूफ़ान उठ गया
जितने भी नाखुदा थे किनारे ठहर गए
मुश्किल थी ज़िंदगी मेरी राहें थी पुरख़्तर
मंज़र तमाम राह के अश्कों में भर गए
'ज़ीनत' किया था वादा तनावर दरख़्त ने
सूरज के इम्तेहान से पहले उजड़ गए
---डाक़म्ल सिंह 'ज़ीनत'