Monday 27 January 2014

       बेबसी  
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रेशम से सफ़ेद बाल उसके 
दर्द और थकन से पिचके गाल 
चेहरे पर लाखों तहरीरें थी 
झुकी कमर और फटी शाल 
सब कुछ है जिस्म के नाम पर 
हड्डियों का पिंजर,और फटे हाल 
कंपकंपाते हाथ में कटोरा 
रुंधा गला और फटा त्रिपाल 
अमीरों का महल भी देखा 
और भ्रस्टाचार का जाल 
वाह रे 'खुदा 'क्या बनाया तूने 
बेबस की क़िस्मत और उसका हाल 
------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Sunday 26 January 2014

सुन्दर सुन्दर मुल्क है लेकिन अपना मुल्क ये प्यारा है 
दुनिया के होठों पर हमने ही मुस्कान उभारा है 
हम सबने मेहनत के बल पर ,सूरज चाँद उतारा है 
सबसे सुन्दर सबसे प्यारा भारत देश हमारा है 
-------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
Sundar sundar mulk hain lekin,apna mulk ye pyaara hai
duniya ke hoton par hamne,hi,muskaan ubhaara hai
ham sabne mehnat ke bal par,suraj chaand utaara hai
sabse sundar,sabse pyara,bharat desh hamara hai
----------------------------kamla singh 'zeenat'

Saturday 25 January 2014

-----उम्मीद -----
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चिलचिलाती धुप में 
निगाहों पे हाथ का साया 
उम्मीद से भरी नज़रें उसकी 
ढलती सी पतली काया 
टुकर-टुकर देखती दुनियां को 
ना क्रोध ना कोई हमसाया 
इक झलक पाने को पगली
ना कोई लोभ ,न माया 
सुहाग या कोख़ का मर्म 
क्या होता है ऐ भाया 
पीड़ सोचो सब उसकी 
जिसने है वक़्त से ये पाया 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
-एक ख्य़ाल प्यारा सा --
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रोज़ आते हो ख़यालों में 
मचलते अरमां के साथ, 
उठा कर मुझे सपनों में 
चल देते हो थाम कर हाथ, 
आँखें मीचे चलती जाती हूँ 
मान कर तेरी हर बात।  
कितना हसीन होता है
तुम्हारे रूह का साथ.…  
जी लेती हूँ हर वो लम्हां 
ज़िंदगी का लेकर हाथ में हाथ  
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Friday 24 January 2014

ज़िंदगी को करीब से देखा 
बेरहम उस नसीब को देखा 
जाने क्या लिखा है मुक़द्दर में  
ज़ुल्म करते हबीब को देखा 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Wednesday 22 January 2014

धड़कनों की रफ़्तार कुछ यूँ बढ़ गयी मेरी 
ज़िंदगी ज़िंदगी से मिली और बिखर गयी 
-------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
Dhadkano ki rafter kuch yun badh gayi
Zindgi zindgi se mili fir bikhar gayi
-------------kamla singh 'zeenat'
zindgi jine ki chahat me ham khud ko tukdon me baant baithe hain
saanson ke tukde ho jaayen na kahin is baat se darte hain 
--------kamla singh 'zeenat'
chalkte aasuon se ye na puchho kyun chale aate hain aksar 
aata hai jab pyam lekar uska bata jati hai purwayi chhukar 
------------------------kamla singh 'zeenat'

Sunday 12 January 2014

----------ग़ज़ल----------------
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ग़ज़ल सुन ने वाले ग़ज़ल सुन हमारा 
इसे फ़िक्र के आसमां से उतारा 

हमारी ग़ज़ल में है खुश्बू हमारी 
किसी ने न परखा किसी ने संवारा 

मेरा लहज़ा नाज़ुक है फिर भी ए यारों 
हर एक शेर, पत्थर जिगर पे उभारा 

मैं सहरा की तपती हुई रेत पर हूँ
वही रेत दरिया ,वही है नज़ारा

ए 'ज़ीनत' नहीं दम के आवाज़ दूँ मैं
मोसल्सल रहे दम उसे है पुकारा
---------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
ghazal sun ne wale ghazal sun hamara
ise fikr ke aasmaaN se utaara

hamari ghazal me hai khushbu hamari
kisi ne na parkha kisi ne sanwara

mera lahja nazuk hai phir bhi aye yaro
har ek sher patthar jigar pe ubhara

main sahra ki tapti huee ret par hun
wahi ret dariya wahi hai nazara

aye ZEENAT nahi dam ke aawaaz dun main
mosalsal rahe dam use hai pukara

....kamla singh 'zeenat'.
जब भी हम परवाज़ करेंगे बिस्मिल्लाह
उड़ने का आगाज़ करेंगे बिस्मिल्लाह
शान से जिसने शान दिया है दुनिया में 
उस मालिक पर नाज़ करेंगे बिस्मिल्लाह

--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
jb bhi hm parwaz karenge bimilaah
udne ka aagaaz karenge bismilaah
shaan se jisne shaan diyaa hai duniyaa mein
us malik par naaz karenge bimilaah 
--------kamla singh 'zeenat' 

Tuesday 7 January 2014

चलती हूँ तेरे बज़्म से अब मैं खुदा हाफिज कह कर 
आउंगी कल फिर से तेरी दुनिया में सवेरा लिए हुए 
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 

साँसें तमाम कर लूँ मैं  तेरी साँसों में 
तू जीता है मुझमे,मैं जीती हूँ तुझमे 
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 

ज़िंदगी को जीने का जूनून हो तुम 
जो तू नहीं ,तो मेरी शायरी भी नहीं 
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 
धड़कने तुझ से साँसें उधार ले कर चलती हैं
जिस्म का क्या है रूह भी तेरी मुरीद है  
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 


कैसे कह दूँ की तुझ से प्यार नहीं 
सबब है जीने का तू और मक़सद भी 
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 
हर दुआ में शामिल है तू मेरे 
खुद को वार कर शबाब हासिल हो 
०७/०१/१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 
तुझ से बढ़ कर कुछ और नहीं पास मेरे 
पा  कर तुझे ज़िंदगी की दुआ मिल गयी 
०७/०१/२०१४ ----कमला सिंह ज़ीनत 
खुद को तेरी नज़र कर दूँ मैं 
कभी मुझको मुझसे मांग कर देख 
-------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

तेरी ज़िंदगी अज़ीज़ है मुझको खुद से ज्यादा 
एक बार कह के तो देख फ़ना हो जाऊं मैं तुझपर 
-----------------कमला सिंह ज़ीनत 
जब भी चाहा लफ़्ज़ों के मोतियों को गूँथना प्यार से 
तल्ख़ बातों के सुई से है हर बार घायल किया उसने 
-------------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

यादों की बस्ती में आज अँधेरा बहुत है 
इंतज़ार आज भी है आतिश बाज़ी का यहाँ 
-------------------कमला सिंह ' ज़ीनत '


परत दर परत खुलते रहे यादों के साये मेरे 
हर एक लम्हा मुझसे हिसाब मांगता रहा 
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'

Monday 6 January 2014

खुद को उसके साये से भी दूर रखती हूँ मैं ज़ीनत
कम्बख़त तन्हाईयों में भी यादें उसकी पीछा करती है
--------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
अक्सर गुज़रती हूँ यादों कि गलियों से मैं उसकी
यादों कि खुश्बू उसकी अब भी मेरा पीछा करती हैं
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'

बेहतर है बंद कर दूँ अतीत के किताबों के पन्नों को उससे
जब भी आता है वो ज़ालिम मेरी नींदें भी ले जाता है साथ
-----------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
बड़ा ही दिलकश अंदाज़ है उस ज़ालिम का 
तल्ख़ बातों को भी चाशनी में डुबो मना लेता है 
-------कमला सिंह' 'ज़ीनत '


यादों के समंदर में लगाकर गोते बटोरी ढेर सारी यादें उसकी सोचा जो के बेहतर कौन 'कम्बख़त'वो ज़ालिम ही बेमिसाल था
--------------------- कमला सिंह 'ज़ीनत'