दिल के जज़्बात
Thursday 31 March 2016
कोशिशें की चमक नहीं पाया
खोटा सिक्का खनक नहीं पाया
सब्र के साथ चोट खाती रही
दिल का शीशा दरक नहीं पाया
कमला सिंह 'ज़ीनत'
अभी तक हम उसी के ज़ुल्म की चक्की में पिसते हैं
जहाँ पर हाथ रखती हूँ वहीं से ज़ख्म रिस्ते हैं
कमला सिंह 'ज़ीनत'
Wednesday 30 March 2016
दस्तक देना लेकिन थोडा़ होले से
दरवाजे़ के हर हिस्से में टूटन है
कमला सिंह 'ज़ीनत'
अकेलेपन के वीराने में हूँ खा़मोश मजा़र
गुलों के टूटे सितारों का खू़ब जमघट है
कमला सिंह 'ज़ीनत'
हर लम्हा ख़ामोश गुज़रना चुप जाना
धीरे - धीरे अपने अन्दर छुप जाना
कमला सिंह 'ज़ीनत'
Monday 28 March 2016
ए
क शेर
मत पूछ मुझसे कितने मराहिल हैं प्यार के
सबका जवाब रख दिया गरदन उतार के
कमला सिंह 'ज़ीनत'
एक शेर
लौटे अभी अभी हैं ये सदियाँ गुजा़र के
मर्जी़ से ही उडे़ंगे कबुतर हैं प्यार के
कमला सिंह 'ज़ीनत'
Tuesday 22 March 2016
एक कप चाय पे चुग़लखोरी
दोस्तों की हंसी उडा़ते हैं
वक्त़ करता है उनको बेइज़्ज़त
गुमशुदा हो के मारे जाते हैं
कमला सिंह 'ज़ीनत'
जाने किस ओर से डंस ले कम्बख़्त
दो मुँहे साँप से डर लगता है
कमला सिंह 'ज़ीनत'
स्वार्थ में खुदको भी अब अंधा बना लेते हैं लोग
दोस्ताने को भी इक धंधा बना लेते हैं लोग
कमला सिंह 'ज़ीनत'
इधर उधर की करके चुगली खुदको बडा़ बनाता है
अपने पन का ढो़ग रचा कर औंधे मुँह गिर जाता है
कमला सिंह 'ज़ीनत'
जो अपने पन का तमाशा दिखाते रहते हैं
वही तो लोग "मुखौटा" लगाते रहते हैं
कमला सिंह 'ज़ीनत'
Saturday 12 March 2016
उफ़्फ़
जब कोई हादसा बे- वक्त़ गुज़र जाता है
बिन कहे आँखों में भी खू़न उतर आता है
कमला सिंह 'ज़ीनत'
एक मतला दो शेर
जिंदगी कब तलक नश्तर रक्खे
कुछ तो मेरे लिये बेहतर रक्खे
जी रही हूँ किसी तरह से मैं
रोज़ कांधे तले बिस्तर रक्खे
ज़ख़्म ही ज़ख़्म से भरी हूँ अभी
जिस्म पे ज़ख़्म के जे़वर रक्खे
कमला सिंह 'ज़ीनत'
तिनका तिनका बटोरती हूँ जब
सुख की चादर को ओढ़ती हूँ जब
तिनका तिनका बिखेर देता है वक्त़
पूरी चादर उधेड़ देता है वक्त़
जब्र के सारे तू दरवाजे तो खोल
ऐ खुदा कितना जुल्म बाकी है बोल
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)