Tuesday 30 April 2013

तमन्ना...

एक तमन्ना है फ़कत निगाहेबान रखना,
निगाहें किसी और को ढूंढे तो बुरा लगता है ।


मेरी धड़कन हो तुम, मेरी सांसे हो तुम, 
दिल किसी और की ख़ातिर धड़के तो बुरा लगता है ।
 
मेरा इश्क हो तुम मेरा जूनुन हो तुम, 
तुम्हारा इश्क कोई और हो तो बुरा लगता है ।
 
अरमान-ए-ज़िन्दगी हो तुम यूँ ही साथ चलो, 
अपनाओ उल्फ़त में किसी और को तो बुरा लगता है ।
 
जाना ना यूँ ही तनहा छोड़ कर तुम मुझे, 
राहे इश्क की इन वादियों में तुम-
किसी और के हो जाओ तो बुरा लगता है ।

........''कमला सिंह''............
टूटे मकान की दिवारें,
आपस मे बातें करती है...

ऐ सखी !
तुम कितने सालों से बेज़ान पड़ी हो?

ऐसी बातेँ सुन कर वो 
अनायास ही अट्हास करती है..

अब तो शरीर ही ज़र-ज़र 
हो चले है 
और तुम बेज़ान की बात करती हो ?

यहाँ ना कोई आता है और ना कोइ जाता है.
और ना ही पुछता है, कि तुम कैसी हो ?

फिर भी मै उन गुनाहगारों को माफ कर 
ठिकाना देती हूँ.. 
आराम करने का .!

ख़ैर मेरी छोड़ो, तुम अपनी तो कहो, 
तुम ने क्या जाना इस ज़िन्दगी में...

वो कहती है !
ये बुत भी अब बेईमान हो चले है.. 

पता नही मै कब चली जाऊ..........
.......''कमला सिंह''..........
राज़ हो राज़ ही रहोगे,
तुम्हे मैंने करीब से जाना है..
तुम क्या हो ?
ये किसी ने ना पह्चाना है..
मैंने सिर्फ तुम्हे और, 
सिर्फ तुम्हे प्यार किया ..
ये मेरी तमन्ना थी,
हरेक सांसो की आवाज़ों को ..
अपने सुर मे ढाला है,
तुम ढल पाये या नही .. 
ये मैंने नही जाना है,
पर तुम्हे पास आने की .. 
चाहत में मैंने सब, 
कुछ लुटा डाला है ..
.......''कमला सिंह''......
देखा है बखुबी ज़िन्दगी को,कुछ इतने करीब से। 
हाथ से रेत की तरह फिसलती अजीब से।

क्या था जो छुट गया हाथो से मेरे,
क्या था जो खो दिया मैंने अपनी ज़िन्दगी से ।

सब जुल्म सहे नियति के मैने,
क़ुबूल भी किया खुशी से इसे ।

फिर क्यूँ आज भी ये दर्द है,
जो ना मिला कभी किसी से ।

बचपन मे खोये सपने बहुत, 
सिसके अरमा, रोयी बहुत,
पर जो मिला है तोह्फा मुझे,
वो है पर अनमोल बहुत,
समेट ली खुशियाँ आँचल में मैंने,
गिला नही अब ज़िन्दगी से ।

शुक्रगुज़ार हूँ उस परवरदीगार का,
जो दिया है तोह्फा मुझ को मेरे नसीब से....
........''कमला सिंह''.........
दर्द का अफ़साना लिये फिरती हूँ । 
बिखरे रंगो का खजाना लिये फिरती हूँ ।


टूटे हुए सूरो का मयखाना लिये फिरती हूँ ।
छलके हुए जाम का पयमाना लिए फिरती हूँ ।

मै वो हूँ जिसने इन्द्रधनुषी रंगो को बिखरते देखा है,
सुरो के झनकार को सिसकते देखा है ।

धरती के कलेजे को फटते देखा है,
सीता जैसी नारियो को ध्ररती मे समाते देखा है ।

पेड़ से टहनियो को अलग होते देखा है । 
समुंद्र को भी हुंकारते देखा है । 

ये आज के वक़्त की कहानियाँ है, 
जिस ने राजा को रंक और रंक को राजा होते देखा है..
.............''कमला सिंह''..............
तुम रोज़ आते हो दिल के आइने में,
तुम्हारे आने से महक उठता है तसब्बुर मेरा 
पर कुछ कह्ते नही ...


यूँ ही धीरे से आना, मुझे छुकर चले जाना,
बड़ा ही सुकून देता है दिल को, 
नींद से बोझिल पलके रोज इंतजार करती है 
तेरे आने का ...

तुम्हारी बाहों में ही पलके बंद होती है मेरी,
वरना खुली आंखो से देखती है 
रास्ता तेरा ....

तुम्हे भी पता है नींद तुम बिन आती नहीं,
फिर भी तड़पाया करते हो,
क्या तुम्हे मेरी याद नही आती या तुम,
तड़पना नहीं चाहते हो ...

काश ये गुण मुझ मे भी होता,
रह पाती मै भी तुम बिन,
पर लगता है कि तुम इस दुनिया से नही,
किसी और दुनिया से आये हो....
.........''कमला सिंह''..........

ज़िन्दगी की हसीन गलियों में, 
किस्सा तमाम हो गया । 
कुछ खो गया, कुछ लूट गया, 
कारवाँ बर्बाद हो गया ।

कुछ तुम चले थे साथ में, 
कुछ हम चले थे ख्वाब में,
राहे अधुरी रह गयी, 
मंजिल अधूरा रह गया ।

वफाओ की मायूशियाँ, 
तल्ख नज़रों की सरगोशियाँ
अनसुलझी पहेली बन गयी ।

ज़िन्दगी की हसीन गलियों में, 
किस्सा तमाम हो गया ।
.......''कमला सिंह''........

जल रहा है

लगी है आग चारों तरफ,
ब्रह्मांड जल रहा है ।
बदले की आग में,
इंसान जल रहा है ।
 
छुए अनछुए सपनो का,
अरमान जल रहा है ।
कही धन,कही मन,कही वन, 
और कहीं तन जल रहा है ।

पापों से अब धरती तो क्या,
आसमान जल रहा है ।
कहीं आह तो कहीं,
जिस्म जल रहे है ।

अजीब सा खेल है कल युग का,
पापी पेट के लिये तो देखो
सारा संसार जल रहा है.....

........''कमला सिंह''........
गमों की जंजीर में जकड़ी, है जिंद्गी मेरी,
किसी ने छीन ली जिंद्गी की हर खुशी मेरी ।

 
रातो की तनहाई से मुझे अब हो गया है प्यार,
ना किसी की चाहत है ना किसी का इंतजार ।
 
यू ही गुजार लेंगे दिन अपनी जिंद्गी के 
करके किसी को याद या ख़ुदा से फ़रियाद ।

वफ़ा तो किया मैने, बेवफाई मुझे मिली,
ऐ दिल चुप हो जा करता है क्यूँ गिला ।

दर्द जब हद से गुजरेगा तो होठो को सी लेंगे 
हमे कोई खुशी मिले या ना मिले 
उस को खुश रहने की दुआ देंगे....
.....''कमला सिंह''......

क्यों चले जाते है नजरे झुका के वो.
आते क्यों नहीं सामने मुस्कुरा के वो.


चाहत दिल में कितनी, वो जानते नहीं
करती हूँ उन से प्यार वो मानते नहीं


चुप के से चले आते हैं ख्यालों मे वो
आते क्यों नहीं सामने मुस्कुराके वो.


देखा है मैंने उनको “मेरानाम“ लिखते हुए
कतरा के चल देते हैं जैसे हम कुछ नही है 
उंनके


जाने क्यूँ शरमा के चेहरा छुपा लेते है वो
आते नही क्यूँ सामने कभी मुस्कुरा के वो.


मै जानती हूँ इस तरह से जताते है मुझ से प्यार
शरमाते है वो शायद, इसलिये नही करते इज़हार


कुछ ज्यादा ही शर्मिले है,
एक झलक दिखला कर छुप जाते है वो
जाने क्यूँ नही आते सामने कभी मुस्कुरा के वो..

....''कमला सिंह''....
जब जब खुश्बु आती है
हवाओ के झोंको से,
लगता है तुम गुजरे हो अभी 
अभी मेरी गली से...

कितनी उमंगे है तुझ से,
खफा हो क्यूँ, बात क्या है?
क्यु दुर हो ?
अब तक मुझ से...

कितना प्यार कितनी चाहत है,
क्या क्या अरमा है दिल मे मेरे, 
हर खुशी को ठुकराया मैंने,
प्यार तेरा पाने के लिये...
 
अब आ भी जाओ, 
तुम्हारी याद मे जलती हूँ,
कब से खड़ी हूँ इसी राह मे,
तेरा ही रास्ता तकती हूँ...

अपने चाह्ने वाले पर, 
इतना भी सितम ठीक नही,
रुठने मनाने में ये,
वक़्त ना गुजर जाये कही.....
.........कमला सिंह......