Tuesday 31 January 2017

ज़मीं   से  शम्स  कभी  जो   क़रीबतर  होगा 
सुलगती  धूप  में  जलता  हुआ  नगर  होगा 

अलामतें  जो  क़यामत  की   शक्ल  ले  लेंगी 
ज़मीं  को  चाटता  फिरता  हुआ  बशर  होगा 

वह  दिन  भी आयेगा इक दिन ज़रूर आयेगा 
रहेगा  न  साया  कोई  और   न  शजर  होगा  

लरज़-लरज़  के ज़मीं पर गिरेगी  सारी उम्मीद 
किसी  की दुआ में न हरगिज़ कोई असर होगा 

फ़िजां  में   ज़हर  भरा   होगा  आग  बरसेगी 
लहुलहान   तड़पता     हुआ    समर    होगा 

वह  जिसने  'ज़ीनत'  दुनिया  तेरी बसायी है 
उसी  की  नज़र  परिंदों  का  बालो -पर  होगा 

---कमला सिंह 'ज़ीनत'
तुझसे  किया  है  प्यार यही तो  कुसूर है 
इस  बात  पे भी  यार क़सम  से  गुरुर है 

रहती  हूँ  तेरी याद मेँ  मसरुफ़  रात दिन 
छाया  हुआ  है  मुझ पे  तेरा  ही सुरूर है 

क्या बात है की तुझमेँ ही रहती हूँ गुमशुदा 
तुझसे  कोई पुराना  सा  रिश्ता   ज़रूर है 

हर वक़्त जगमगाती हूँ उस रौशनी से मैं 
सूरज  है मेरा ,चाँद , तू  ही  मेरा   नूर है 

दीवाने पन को देख कर  हैरत में लोग हैं 
नफ़रत  का  देवता  भी  यहाँ   चूर-चूर है 

कहते  हैं जिसको  लोग पागल है बावला 
'ज़ीनत'  वही  तो मेरा  सनम बा-शऊर है 

---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Monday 30 January 2017

तुम   मेरे  आफ़ताब   ही   रहना 
एक   ताज़ा   गुलाब   ही   रहना 

तुझको   सर  आँख  पे  बैठाऊँगी 
बन  के  आली  जनाब  ही  रहना 

अपनी  आँखों  में  तुझको रखूंगी 
ख़्वाब  हो  तुम  ख़्वाब  ही  रहना 

सर्द  पड़   जाए  ना  ख़ुमार  कभी 
उम्र   भर  तुम  शराब  ही  रहना 

बंद  रखना  मुझे  क़यामत  तक 
दिल  की बस्ती का बाब  ही रहना 
  
गर    ज़माना    सवालकर   बैठे 
तुम   हमारा   जवाब  ही   रहना 

प्यास 'ज़ीनत' की बुझ न पाए कभी 
खुश्क  सहरा  सुराब   ही   रहना 
----कमल सिंह 'ज़ीनत'