Monday 30 June 2014

दर्द

उफ़ ये दरिंदगी इंसान की
क्रूरता है इनमें हैवान की
विभत्स है रूप इनका ऐ खुदा
आत्मा भी है इनमें शैतान की
---कमला सिंह "ज़ीनत "

Sunday 29 June 2014

एक शेर

बादशाही किये रहता है बराबर मुझ पर
एक फरयादी की सूरत मैं पडी रहती हूँ 

-------------कमला सिंह जीनत
चार मिसरे 
********************
शाम हो जिंदगी सवेरा हो
एक धरती पे घर भी मेरा हो
शाख जब तक हरे नहीं होंगे
कैसे चिडियों का फिर बसेरा हो
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
देखो न हाथ से मेरे कुछ छूट रहा है
आकर हमारे पास कोई टूट रहा है 
कमला सिंह 'ज़ीनत'
जहां जहां वो ले जाता है वहां वहां हम साथ में हैं 
इक पत्थर की सूरत बनकर उस पागल के हाथ में हैं 

कमला सिंह 'ज़ीनत'

Friday 27 June 2014

ग़ज़ल लिखने की चाहत ने मुझे मसरूफ कर डाला 
न दिन को चैन होता है न शब भर नींद आती है 
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
Ghazal likhne ki chahat ne mujhe masroof kar dala
na din ko chain hota hai na shab bhar neend aati hai
---kamla singh 'zeenat'
लफ्ज़ दर लफ्ज़ ख़्यालात की पंखुरियों से 
एक खुश्बू मैं बसा देती हूँ हर मिसरे में 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
Lafz dar lafz khayalaat ki pankhuriyon se
aik khushbu main basa deti hun har misre me
----kamla singh 'zeenat'

Tuesday 24 June 2014

अपने भी अब तो छलने लगे हैं 
रंग गिरगिट सा बदलने लगे हैं 
रिश्तों की मर्यादा रही अब कहाँ 
खून भी  खून से जलने लगे हैं
----कमला सिंह 'ज़ीनत' 
वक़्त ने ज़िंदगी की बोली लगाई 
इंसान ने इंसान की होली जलाई  
चमत्कार हो नया कुछ ए खुदा 
तेरे आगे है मैंने झोली फैलाई  
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
एक ख़्याल ऐसा भी 
*********************
एहसासों की दुनियां से दूर 
लाशों के शहर में 
चली आई हूँ 
घरौंदा भी बनाया 
और बन गयी मैं 
एक ज़िंदा लाश 
न कोई एहसासात 
न कोई ज़ज़्बात 
न कोई मुलाक़ात 
रह गयी एक 
ज़िंदा लाश 
न कोई आस 
न कोई प्यास 
चलती फिरती 
बस … …… 
ज़िंदा लाश 
--कमला सिंह 'ज़ीनत '

Monday 23 June 2014

तुझमें तमाम हो जाऊं
किस्सा ए आम हो जाऊं
समेट ले आगोश में
मैं तेरे ही नाम हो जाऊं
---कमला सिंह "ज़ीनत "

Sunday 22 June 2014

ना शब ना सहर है

ना शब ना सहर है
इश्क का ही कहर है
हर सू है अंधेरा अब
जिंदगी भी ज़हर है
--कमला सिंह "ज़ीनत "
दिल में इक अरमान बाक़ी है 
इश्क़ का इक इम्तिहान बाक़ी है 
आँखों ने देखे हैं मंज़र बहुत 
ज़िंदगी का इक तूफ़ान बाक़ी है 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

दर्द की थाह नहीं कोई 
दर्द की राह नहीं कोई 
बिन मांगे मिल जाते हैं
अब तो चाह नहीं कोई 
---कमला सिंह 'ज़ीनत  

Saturday 21 June 2014

कुछ अब शोख़ शरारा लिखना बाक़ी है
कागज़ पे अंगारा लिखना बाक़ी है
आसमां को लिखा है कुछ लफ़्ज़ों में
केवल चाँद सितारा लिखना बाक़ी है
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Kuchch ab shokh sharara likhna baqi hai kagaz pe angara likhna baqi hai asman ko likkha hai kuchch lafzon mein kewal chaand sitara likhna baqi hai ---Kamla Singh 'zeenat'

Friday 20 June 2014

 कविता यूँ भी 
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मीलों की दूरियां हैं 
कैसी ये मज़बूरियां  हैं 
प्यास रही अधूरी जो  
तेरे मेरे दरमियां हैं 

जुनु की हद से चाहा तुझे 
ये उल्फत की वादियां हैं 
मिलते हैं रंग गुल्सिताँ  के 
कैसी ये दुश्वारियां हैं 

इब्तिदा मोहब्बत की ये 
खुदा की मेहरबानियां हैं 
जो न मिल पाऊं ज़िंदगी में 
इश्क़ की रूसवाइयां हैं 
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Wednesday 18 June 2014

एक ख़त मेरे इमरोज़ के नाम 
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मुझे तुम्हारा इंतज़ार था 
तुम नहीं आये। . 
शाम यूँ ही तन्हा गुज़र गयी 
मैं तुम्हें ही सोचती रही 
न जाने कब ये रात पंख फैला 
आगोश में ले लिया धरती को 
पता ही न चला ,
क्या करूँ … तुम्हारी बातों 
और यादों की झील है ही इतनी मीठी ,
मैं उसमे जब भी डूबती हूँ ,
निकलने की तमन्ना नहीं होती 
बस …… डूब जाने को जी चाहता है 
खुद ही तुममे तमाम हो जाती हूँ 
बेसूद फ़ज़ाओं सी 
वक़्त का पता ही नहीं चलता 
जीवन के इस पड़ाव पर तुम्हारा प्यार 
मुझे एक नवयौवना सा एहसास दिलाता है 
एक जीने की अनुभूति फिर से जगती है 
काश .... ये उम्र की शाम यही रुक जाती 
पर ये तो अटल है ,ढलना ही है इसे ,
मेरे हर पीड़ा को तुम पि लेते हो 
और मैं स्वस्थ हो जाती हूँ ,
ईश्वर की शुक्रगुज़ार हूँ मैं 
मेरे ख्यालों  की तस्वीर से भी ज़यादह 
नेमतों से बख्शा  है  मुझे 
जितना भी वक़्त मिले,  आगे मुझे ,
तुम्हारे बगैर न गुज़रे  .... .... 
यही  जुस्तजू भी है वरना 
बेकार हो जाएगी ये ज़िंदगी 
आगे वक़्त बताएगा 
क्या खोया ,क्या पाया ?
मैंने तो खोया ही नहीं  …। 
तुमको पाकर मैं अनमोल हो गयी 
नायाब है तुम्हारी मोहब्बत 
सबकी क़िस्मत में नहीं मिलता 
यूँ ही हमेशा रखना दिल में 
तमाम उम्र 
मेरे मुस्तक़बिल हो तुम 
मेरी ज़िंदगी हो तुम 
ज़िंदगी की शाम भी तुम 
और सवेरा भी तुम 
एक मुसलसल प्यास  …
हमेशा अपने अल्फ़ाज़ों में उकेर कर 
ज़िंदा रखना मुझे 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Tuesday 17 June 2014

वक़्त के हाथों में नसीब है तक़दीर का अजी ज़ीनत 
खरीदी न और न बिकती है ,ये तो खुदा से मिलती है
--------------------कमला सिंह ज़ीनत 
waqt ke haathon mein naseeb hai taqdeer ka aji zeenat 
kharina aur na bikti hai ,ye to khudaa se milti ha hain 
-----------------------kamla singh zeenat

Aik.................sher
....................................
Bahut pakiza hai wo naam jisko chaahti hun main
Wazuu se hoke uska naam leti hun saliqe se.

.......................zeenat.

Aik........................sher
........................................
Itna batana kaafi hai mahfil ko mere dost
Main jisko chaahti hun wo mahfil ka noor hai.

.......................zeenat.


Aik..........sher
........................
Aik dewana hai sahra se abhi lauta hai
Chaand taaron ke safar jaisa hai aanaa uska

Kamla singh zeenat.

वक़्त के हाथों में नसीब है तक़दीर का अजी ज़ीनत 
खरीदी न और न बिकती है ,ये तो खुदा से मिलती है
--------------------कमला सिंह ज़ीनत 
waqt ke haathon mein naseeb hai taqdeer ka aji zeenat 
kharina aur na bikti hai ,ye to khudaa se milti ha hain 
-----------------------kamla singh zeenat

Aik.................sher
....................................
Bahut pakiza hai wo naam jisko chaahti hun main
Wazuu se hoke uska naam leti hun saliqe se.

.......................zeenat.

Aik........................sher
........................................
Itna batana kaafi hai mahfil ko mere dost
Main jisko chaahti hun wo mahfil ka noor hai.

.......................zeenat.


Aik..........sher
........................
Aik dewana hai sahra se abhi lauta hai
Chaand taaron ke safar jaisa hai aanaa uska

Kamla singh zeenat.

Sunday 15 June 2014

वो चाहत 
--------------------
वो चाहत क्या ही उम्दा है 
वो चाहत कितनी अच्छी है 
वो चाहत लाज़वाब है 
वो चाहत नर्गिसी  की खुश्बू 
वो चाहत रात की रौनक 
वो चाहत दिन का शहज़ादा 
वो चाहत बोल तो   सकता है 
वो चाहत  गूंगा रहता है 
वो चाहत मौसम ए गरमां 
वो चाहत सर्द की आँधी 
वो चाहत बारिश की बूंदें  
वो चाहत फूल की खुश्बू  
वो चाहत हमारी है 
वो चाहत शान वाला है 
वो चाहत है दुआ मेरी 
वो चाहत चाँद जैसा है 
वो चाहत बर्फ वाली है 
वो चाहत एक दरिया है 
वो चाहत एक कश्ती है 
वो चाहत एक हलचल है
वो चाहत है सफ़ीरों सा 
वो चाहत है फ़क़ीरों सा 
वो चाहत एक दिल जैसा 
मेरे होठों पे तिल जैसा 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

कहते है जिसे पापा सभी ,होता वो लफ्ज़ तो  प्यारा है  
बच्चे  भी कहते हैं उसे,होता वो लफ्ज़ तो  दुलारा है 
न जानूं वो होता है क्या ,जिसको ज़ीनत ने न देखा है 
जैसा भी होता है हो,पर जग में वो लफ्ज़ तो  न्यारा है
------कमला सिंह 'ज़ीनत'
 

Saturday 14 June 2014

मेरी खातिर लड़ जाएगा 
खून किसी का कर जाएगा 
इतना प्यार है मुझसे उसको 
मैं न रहूँ तो मर जायेगा 
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Meri khatir lard jaayega
khoon kisi ka kar jayega itna pyaar hai mujhse usko main na rahun to mar jayega
----kamla singh 'zeenat'

Friday 13 June 2014

बात चुपके से कहता है वो
मेरी आँखों में रहता है वो
खुश रहे .पुतलियाँ तर करे
वरना आँखों से बहता है वो
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Baat chupke se kahta hai wo meri aankhon me rahta hai wo khush rahe putliyaaN tar kare warna aankhon se bahta hai wo
--kamla singh 'zeenat'
एक मतला एक शेर 
_______________________
उसे न देखूं तो दिल ही दहकने लगता है
जिगर के गोशे में कोई सिसकने लगता है
वो ख़्वाब बन कर गुज़रता है जब भी आँखों से
हमारा कमरा सुबह तक महकने लगता है
-----कमला सिंह 'ज़ीनत'

ik matla aik sher Use na dekhun to dil hi dahakne lagta hai jigar ke goshe me koi sisakne lagta hai wo khwaab ban ke guzarta hai jab bhi aankhon se hamara kamra subah tak mahane lagta hai kamla singh zeenat

Friday 6 June 2014

बहत्तर छेद की कश्ती -------------------------- साहिल पर रोज ही लंगर डालती हैं अनगिनत कश्तियाँ परन्तु मुझे वही कश्ती पसंद है जिसके अंदर है बहत्तर छेद उसकी सवारी का अपना मजा है डूब जाने और पार कर जाने के बीच अपने दोनो हाथों से निकालते रहना पानी कश्ती के पेंदे से बहुत अच्छा लगता है मुझे कल यदि पार करना पडे मुझे वह नदी वह झील वह समुंदर तो फिर चाहूँगी मैं बार बार इसी कश्ती की सवारी सच मुझे बहुत पसंद है बहत्तर छेद की कश्ती कमला सिंह जीनत

Sunday 1 June 2014

विश्वराज 
----------------
विशाल पहाड़ी पर बैठे हुए विश्वराज 
तुम्हारे नीचे तराई में 
जो दिख रही है हरियाली 
वो मृगमरीचिका है 
सतर्क रहना 
जंगली भैंसों का झुण्ड उस पार खड़ा है 
क़ानून व्यवस्था की नदी में तुम्हारे 
पहरेदार मगरमच्छों ,की संख्या 
बहुत कम  है 
बाड़ लगाओ ,बाड़ लगाओ 
नदी के मुहाने पर दूर तलक 
बाड़ लगाओ 
हरवारों को नियुक्त करो 
जितनी जल्दी हो 
भैसों का झुण्ड मुहाने पर खड़ा है 
बेलगाम,जंगली भैसों के झुण्ड को 
मोड़ने की ज़रूरत है 
याद रहे 
जिस दिन भैसों का झुण्ड बिदकेगा 
नदी को पार करने की अफरा-तफरी में 
तुम्हारे मगरमच्छी पहरेदारों का 
थूथन कुचल जाएगा 
भैसों का जीव सैलाब 
भगधड़ मचाता हुआ 
बेलगाम,तुम्हारे सुनहरे गाँव को 
नुकक्ड़ ,चौपालों को 
खेत खलिहानों को 
रौंदता हुआ 
दूर किसी और नदी के मुहाने तक 
निकल जाएगा 
बेलगाम भैसों को एक 
मज़बूत हरवारे की ज़रूरत है 
भैसों के जीव सैलाब को 
नदी के मुहाने से 
दूर रखना बहुत ज़रूरी है 
अपने गाँव की  सुरक्षा हेतु 
अपनी रक्षा हेतु 
बहुत ज़रूरी है 
सुरक्षा  … 
वर्ना 
टूट जाओगे ,बहुत पछताओगे 
विश्वराज  ……… 
..... कमला सिंह 'ज़ीनत'