Thursday 22 January 2015

चार मिसरे अभी अभी
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सिर्फ़ अपने सिवा हर्गिज़ न कोई पाएगा
देख लेगा तो तेरा चेहरा उतर जाएगा
दिल के टूटे हुए पत्तों को ज़रा सूखने दे
सूख जाने दे तेरा नाम उभर आएगा
चार पंक्तियाँ
याद वाले ओ भुलाने वाले
हो कहाँ मुझको सताने वाले
तेरी हर बात से तौबा तौबा
जा अरे झूटे बहाने वाले
चार पंक्तियाँ अभी अभी
पास रहता है वो जुदा भी है
इक नज़र से मेरा खु़दा भी है
मेरे सबसे क़रीब है लेकिन
बात सच है कि बेवफा़ भी है
एक सच्ची बात
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कभी कभी अपनों से दूरी भली
जि़न्दगी की हर मजबूरी भली
पलक बंद करते ही करें साजिश 
ऐसे मौका़ परस्तों से छुरी भली
---डा.कमला सिंह "ज़ीनत "
लोग ढूँढेंगे कल तरानों में
जि़क्र भी होगा आसमानों में
उसको ही याद किया जायेगा
जो परिंदा रहे उडा़नों में
LOG DHUDENGE KAL TARANO ME
ZIKR BHI HOGA AASMANO MEIN
USKO HI YAAD KIYA JAYEGA
JO PARINDA RAHE UDANO MEIN


चार पंक्तियाँ
हमारी जिंदगी यूँ तर -ब- तर है
इसी सूरत हर इक लम्हा गुज़र है
समझना है तो यूँ समझा रही हूँ
भरी बरसात में मिट्टी का घर है


चार पंक्तियाँ
जब कभी आँख में आँसू आये
यूँ लगे जैसे कहीं तू आये
काश इक दिन मेरे मुक़द्दर में
ऐ सितमगर तू हू ब हू आये

कभी कभी अपनों से दूरी भली जि़न्दगी की हर मजबूरी भली पलक बंद करते ही करें साजिश ऐसे मौका़ परस्तों से छुरी भली कमला सिंह "ज़ीनत "

Monday 5 January 2015

नया साल मुबारक
खु़दा नहीं हो खु़दादाद हो यही माना
करम के बाद भी होता है क्या नहीं जाना
गुज़रते वक्त़ ने कुछ ज़ख़्म गहरे छोडे़ हैं
मसीहा बन के 'नये साल' तुम चले आना
***********ग़ज़ल**********
तेरी नज़रों से उतरने वाले
पहले हम ही रहे मरने वाले
जि़न्दगी दार कर गयी थी हमें
हम ही थे दार पे चढ़ने वाले
सोच कर दर्द बहुत होता है
तुम रहे पर को क़तरने वाले
ये लो दिल की कि़ताब खोल दिया
गुम कहाँ हो गये पढ़ने वाले
है अंधेरा खडा़ घेरे हमको
तुम अंधेरों से थे लड़ने वाले
कुछ क़तारों में अभी हैं 'जी़नत'
हादसे हम पे गुज़रने वाले
कमला सिंह 'ज़ीनत'
था बहुत देर तक ठहरा मुझमें
कोई गूँगा सा था बहरा मुझमें
जाते जाते सितम ये तोड़ गया
दे गया ज़ख़्म वो गहरा मुझमें


चार मिसरे अभी अभी
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गुफ़्तगू से हासिल है गुफ़्तगू की दो सूरत
इक हदूद से बाहर और एक हद वाली
मक्खियों के बारे में जानना ज़रुरी है
कौन बैठे ज़ख़्मों पर कौन है शहद वाली