Wednesday 25 December 2013

Aik sher ........................ Har roz mere shahr me aate hain sitamgar Bhule se bhi masiha edhar ko nahi aataa

हर रोज़ मेरे शहर में आते हैं सितमगर
भूले से भी मसीहा इधर को नहीं आता
----------कमला सिंह ज़ीनत

Main ne kabhi bhi kaanton se inkaar na kiya Kab tak ye zakhm khana muqaddar me hai likha
मैं ने कभी भी काँटों से इंकार न किया
कब तक ये ज़ख्म खाना मुक़द्दर में है लिखा
--------------कमला सिंह ज़ीनत

Jo phool khila hai mere gamle me aye khuda Uski nigahbaani hawale tere khuda
जो फूल खिला है मेरे गमले में ए खुदा
उसकी निगाहबानी हवाले तेरे खुदा
--------कमला सिंह ज़ीनत

Mera jo devta hai wo mujhsa hai bawla Ek pal ko ham na dekhen to kafir sumaar hon
मेरा जो देवता है वो मुझसा है बावला
एक पल को हैम न देखें तो काफिर शुमार हों
-------कमला सिंह ज़ीनत

Saturday 21 December 2013

कहता नहीं लबों से पर बयाँ  कर जाती है निगाह उसकी 
किस कदर बेचैन है रूह उसकी इक झलक पाने के लिए 
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

खामोशियाँ उसकी मुझको बेचैन किये जाती है ज़ीनत 
मेरे इक आह से भी  तड़प उठती है उसकी रूह तलक 
-----------------------कमला सिंह ज़ीनत 



उन्वान -----------अप्सरा (२०)
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रोज़ वो महफ़िलें सजाती हैं 
मुझको तहज़ीब से बुलाती हैं 
शायरी मेरी फ़क़त  सुनने को 
अप्सराएँ  उतर के  आती हैं 
--------कमला सिंह ज़ीनत 
roz wo meri mahfilen sajaati hain 
mujhko tahzib se  bulaati hain 
shaayri meri faqat sunne ko 
apsaraayen utar ke aati hain 
-------kamla singh zeenat 

Friday 20 December 2013

पहाड़ी तेरी क़िस्मत में नहीं पानी ठहर जाये 
अगर पानी की ख्वाहिश है तो फिर तुम झील बन जाओ 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 
Pahaadi teri qismat mein nahi pani thahar jaaye Agar pani ki khwahish hai to phir tum jheel ban jaao
-------------------kamla singh zeenat

भरा हो दूर तक कोहरा तो मुझको अच्छा लगता है
महल और झोंपड़े का कोई भी नक़शा नहीं दीखता
-----------------कमला सिंह ज़ीनत 
Bhara ho duur tak kohra to mujhko achchaa lagta hai Mahal aur jhonpde ka koi bhi naqsha nahi dikhta
-------------------------kamla singh zeenat

Thursday 19 December 2013

जीत पर तुम जश्न करना और रोना मात में 
सो नहीं पाता  है हरगिज़ ,तू अमीरी,रात में 
खूब करते फाका -मस्ती ,सब्र है इनका गुलाम 
भूक मर जाती है आकर मुफलिसों की आँत में 
----------कमला सिंह ज़ीनत 
jeet par tum jashn karna aur rona maat me 
so nahi pata hai hargiz tu amiri,raat me 
khub karte faka-masti ,sabr hai inka gulaam 
bhuk mar jaati hai aakar muflison kii aant me 
---------------kamla singh zeenat 

खुदा बन चुके हो खुदाई नहीं है 
बड़प्पन ये तेरी बढ़ाई नहीं है 
अकड़ कर चलो मत,इधर तेरे रहते 
ग़रीबों के तन पर रज़ाई नहीं है 
------कमला सिंह ज़ीनत 
khuda ban chuke ho khudayi nahi hai 
badppan ye teri badhayi nahi hai 
akad kar chalo mat,idhar tere rahte 
garibon ke tan par razayi nahi hai 
------kamla singh zeenat 
बदलते वक़्त में दुत्कारना मत 
ग़रीबों को तू ताने मारना मत 
वो चिंगारी खड़ी है आग बनकर 
अमीरी अब उसे ललकारना मत 
---------कमला सिंह ज़ीनत 
badalte waqt me dutkarna mat 
garibon ko tu taane marna mat 
wo chingari khadi hai aag bankar 
amiri ab use lalkarna mat 
------kamla singh zeenat 
शुमार भूल गया उँगलियों से  तारे का 
वो हाल कह ना सका दोस्तों शुमारे का 
जो देखा खेलते नंगे  बदन ग़रीबों को 
पसीना छूट गया देखते ही जाड़े का  
--------कमला सिंह ज़ीनत 
shumaar bhul gaya ungliyon se tare ka
wo haal kah na saka doston shumare ka 
jo dekha khelte nange badan garibon ko 
paseena chhutt gaya dekhte hi jade ka 
-----------------kamla singh zeenat 

प्यार में दिल चीज़ क्या है दिल कि धड़कन बंट गयी 
उसकी यादों की किताबें  लो ज़बानी  रट  गयी 
बैठी थी कुछ काम करने  आ गया उसका ख्याल 
काटना नींबू था मुझको और ऊँगली कट गयी 
-------------कमला सिंह ज़ीनत 
pyaar me dil cheez kya hai dil ki dhadkan bant gayi 
uski yaadon ki kitaben lo zabaani rat gayi 
baiothi thi kuch kaam karne aa gaya uska khyaal 
katna nimbu tha mujhko aur ungli kat gayi 
----------kamla singh zeenat 

Wednesday 18 December 2013

दर्द का मेला लगा रहता है हरदम मुझमें 
ऐसे हालात में मैं उसको भुलाऊँ कैसे 
----------------कमला सिंह ज़ीनत 
Dard ke mela laga rahta hai hardam mujh me
Aise halaat me main usko bulaaun kaise.
गुनगुनी धुप में खिलते किरण सा चेहरा उसका ज़ीनत  
मेरी ज़िंदगी को इक नयी सुब्ह का अहसास कराता है 
------------कमला सिंह ज़ीनत 

उसकी याद की राख को पोटली में सहेज रखा था ज़ीनत ने 
दबे  चिंगारियों को सुलगा दिया हवाओं ने  फिर से 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 

uski yaad ki rakh ko potli me sahej rakha tha zeenat ne 
dabe chingaariyon ko sulgaa diya hawaon ne phir se 
--------------------kamla singh zeenat 

Tuesday 17 December 2013

--------------नज़म -----------
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(ढूंढ लेना मुझे आसान नहीं )
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गुमसुदा हो चुकी हूँ मैं खुद में 
मेरी हस्ती तमाम है खुद में 
रौशनी मेरी दफ्न है मुझमें 
मुझमें बस्ती बसी है लहजे की 
मेरे अंदर बहुत है शोर अभी 
मेरी एक खोज है मेरे अंदर 
मैं ही मैं खुद भटकती रहती हूँ 
मुझ में इक रूह प्यासी चलती है 
इक तमाशा बनी हूँ खुद में मैं 
चोट पे चोट लगते रहते हैं 
हर तरफ ज़ख्म की कतारें हैं 
मैं मसीहा हूँ अपने ज़ख्मों का 
मुझमे उलझन है एक पेचीदा 
रास्ता कोई भी नहीं मुझमे 
खुद में मजबूर तमाशा हूँ मैं 
खुद की बेदर्द तमाशाई हूँ मैं 
दो कदम चलने भर की जान नहीं 
फ़िक्र की क़ैदी हूँ इंसान नहीं 
खुद से बाहर मेरी पहचान नहीं 
ढूंढ  लाना मुझे आसान नहीं 
ढूंढ  लाना मुझे आसान नहीं 
---कमला सिंह ज़ीनत 
--------नज़म ----------
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(कुछ नहीं वो ,फकत किताब सा है )
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रात दिन जिसकी जुस्तज़ू है मुझे 
जो मेरे साथ साथ रहता है 
जो मेरे साथ साथ चलता है 
ढल के मासूम सा अल्फ़ाज़ों में 
मखमली वर्क पे मचलता है 
जो तख़य्युल में है खुश्बू बनकर 
जिसका होना सुकून देता है 
रात आँखों में बसर होती है 
दिन गुज़र जाता है हवाओं सा 
एक एहसास सुरसुरी बनकर  
दौड़ा फिरता है पहलु से मेरे 
एक सिहरन सी उठती रहती है 
काँप जाती है मेरी पूरी हयात 
सारे औराक़ जलने लगते हैं 
फ़िक्र खो देता है खुद अपना हवास  
सुर्ख हो जाती हैं आँखें थककर 
मैं लरज़ जाती हूँ सर से पॉ तक 
जागती आँखों में वो ख्वाब सा है 
ये हक़ीक़त है माहताब सा है 
ये हक़ीक़त है आफताब सा है 
ये हक़ीक़त है लाजवाब सा है 
कुछ नहीं वो ,फ़क़त किताब सा है 
कुछ नहीं वो ,फ़क़त किताब सा है 
--------कमला सिंह ज़ीनत 

Monday 16 December 2013

-----------ग़ज़ल----------
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दिल के टुकड़े हज़ार करती गयी 
ए सनम तुझसे प्यार करती गयी 

डूब जाने का था बहुत इम्कान 
फिर भी दरिया को पार करती गयी 

कोई मंज़िल नहीं था आँखों में 
डेग पर डेग रोज़ भरती गयी 

कैसा जादू हुआ था मुझ पे के
वाह क्या इश्क़ में उतरती गयी

मुझ पे बारिश सा था वो बरसता गया
मैं भी बरसात से निखरती गयी

एक भँवरे ने कुछ कहा था बस
पंखुड़ी जैसी मैं बिखरती गयी

उसको ज़ीनत तमाम उम्र बग़ौर
इक कहानी समझ के पढ़ती गयी
--------------कमला सिंह ज़ीनत
---------ग़ज़ल ----------------
-----------------------------
वो बहुत लाजवाब है मेरा 
सुर्ख ताज़ा गुलाब है मेरा 

आँख भर उसको रोज़ जीती हूँ 
खुशनुमा एक ख्वाब है मेरा 

उसकी खुश्बू से हूँ मोअत्तर मैं 
महका महका नवाब है मेरा 

रात उससे ही जगमगाती है
पुरकशिश माहताब है मेरा

जब बरसती हूँ उसकी यादों में
फुट पड़ता हुबाब है मेरा

रौशनी बस उसी से है ज़ीनत
इक वही आफताब है मेरा
---------कमला सिंह ज़ीनत
---------ग़ज़ल ----------------
-----------------------------
वो बहुत लाजवाब है मेरा 
सुर्ख ताज़ा गुलाब है मेरा 

आँख भर उसको रोज़ जीती हूँ 
खुशनुमा एक ख्वाब है मेरा 

उसकी खुश्बू से हूँ मोअत्तर मैं 
महका महका नवाब है मेरा 

रात उससे ही जगमगाती है
पुरकशिश माहताब है मेरा

जब बरसती हूँ उसकी यादों में
फुट पड़ता हुबाब है मेरा

रौशनी बस उसी से है ज़ीनत
इक वही आफताब है मेरा
---------कमला सिंह ज़ीनत
---------ग़ज़ल--------
-----------------------
दिल से उसको भुला नहीं सकती 
एक पल भी रुला नहीं सकती 

पी तो सकती हूँ ज़हर का प्याला 
उसको हरगिज़ पिला नहीं सकती 

वो मेरा बुत है जम चुका है बहुत 
चाह कर भी हिला नहीं सकती 

उसकी यादों में जागती आँखे
क्या करूँ मैं सुला नहीं सकती

रूठ जाता है जब भी वो मुझसे
भूक भी हो तो खा नहीं सकती

लाख दौलत हो मेरे मुट्ठी मे
वो बिके भी तो ला नहीं सकती

दूर मुझसे है वो बहुत ज़ीनत
जब भी चाहूँ बुला नहीं सकती
--------------कमला सिंह ज़ीनत
------------------ग़ज़ल----------------
-----------------------------------------------
तुम तो जाके बैठे हो गेसुओं के साये में 
जल रही हूँ मैं अब भी बिजलियों के साये में 

उँगलियाँ उठी होंगी तुम तो डर गए होगे 
जी रही हूँ मैं लेकिन तल्खियों के साये में 

क़ीमती जवानी थी जिसको तेरी गलियों में 
छोड़ कर चले आये खिड़कियों के साये में 

रौंदने लगी मुझको बेवफ़ाईयों तेरी
छटपटा रहे हैं हम सलवटों के साये में

क्यूँ जुदा नहीं करते क्यूँ भुला नहीं देते
टूटते हैं हम अक्सर दूरियों के साये में

तुम तो खुश हुए होगे इक न एक दिन शायद
मेरी उम्र गुज़री है हिचकियों के साये में

लड़ रही हूँ मैं तन्हा ज़ीनत अब हवाओं से
मसअला है जीने का आँधियों के साये में
---------------------कमला सिंह ज़ीनत
---------------ग़ज़ल -----------------------
------------------------------------------------
वो खड़ा रहता है हर वक़्त कलंदर की तरह 
मेरी आँखों के मुक़ाबिल में समुन्दर की तरह 

मुझको समझाता है जीने का हुनर कैसा हो 
मुझमें रहता है वो दिन रात पयम्बर की तरह 

दर्द ही दर्द मेरे सीने में रखता गुजरे 
नोंक चुभती फिरे अन्दर मेरे खंज़र की तरह 

नींद आएगी यक़ीनन यह गुमाँ है मुझको 
बिछ रहा है कोई इक खुशनुमा बिस्तर की तरह

दिल के बाज़ार में ज़ीनत जो खड़ा है खामोश 
भीड़ के बीच भी क्यूँ लगता है दिलवर की तरह 
-------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

Friday 13 December 2013

आ मेरी मौत कि डोली तू उठा मेरे नसीब 
वरना  सुन लाश मेरी फेंक दे चौराहे पर 
-----------कमला सिंह ज़ीनत 
aa meri maut ki doli tu utha mere naseeb 
waranaa sun lash meri fenk de chaurahe par 
----------------------kamla singh zeenat 
वो ऐसा फूल है वाहिद की जिसकी खशबू से 
तमाम  उम्र  मेरी रूह  तलक  महकेगी 
-----------कमला सिंह ज़ीनत 

wo aisa phool hai wahid kii jiski khusboo se 
tamaam umr meri ruh  talak mahkegi 
-------------------kamla singh zeenat 

कर दे सीने में मेरे वक़्त तू बेदर्द सुराख़ 
घुट के जीना मेरे अंदाज़ को गवारा नहीं 
----------------कमला सिंह ज़ीनत 
kar de seene mein mere  tu bedard surakh 
ghut ke jina mere andaz ko gawara nahi 
---------------kamla singh zeenat 

Thursday 12 December 2013


दुःख कि ज़ंज़ीरों को वो काट दिया करता है
बे-बहा खुशियों को वो बाँट दिया करता है
बस दुआ करते रहो दोस्तों उसके दर पर
ज़ख्म भी मेरा खुदा पाट दिया करता है
-----कमला सिंह ज़ीनत

Dukh ki zanjeeron ko wo kaat diya karta hai Bebahaa khushiyon ko wo baant diya karta hai Bas dua karte raho dosto uske dar par Zakhm bhi mera khuda paat diya karta hai.
--------Kamla singh zeenat

ठोकर लगा हो जिससे वो पत्थर उठा के मैं 
कुछ दूर फैंक देती हूँ अपनी निगाह से
------कमला सिंह ज़ीनत
Thokar laga ho jis se wo patthar utha ke main Kuchch duur faink deti hun apni nigaah se Kamla singh zeenat
--------ग़ज़ल-----------
------------------------
मुझमे एक मचलता साया 
मेरे   अंदर   चलता साया 

ख्वाबों  के  उस  चौराहे  पे 
रोज़ मेरा ही जलता साया 

देखके मैं मजबूर बहुत हूँ 
उसकी ओर निकलता साया 

मेरे  साये   के   साये   में 
उसका भी है पलता साया 

कितनी  है रंगीन  मिज़ाजी 
हर पल रंग बदलता साया 

ज़ीनत तुझमे आखिर आकर 
शाम तले  इक ढलता साया  
-----कमला सिंह ज़ीनत 

Wednesday 11 December 2013

Zindagi ko sanwaar lo hanskar Gham kaleje me maar lo hanskar Raushni utregi yaqeen karo zeenat ka Gham ka chehra utaar lo hanskar
Kamla singh zeenat.
ज़िंदगी को संवार लो हंसकर
ग़म कलेजे में मार लो हंसकर
रौशनी उतरेगी यक़ीन करो ज़ीनत का
ग़म का चेहरा उतार लो हंसकर
----कमला सिंह ज़ीनत
Sukuun jab na mile sar bhi tekte hain nahi Murda mauus pada ho to dekhte hain nahi
Kamla singh zeenat
सुकून जब न मिले सर भी टेकते हैं नहीं
मुर्दा मायूस पड़ा हो तो देखते हैं नहीं
------कमला सिंह ज़ीनत

Sabr sabko ataa kare maula Jo pada ho khada kare maula
Kamla singh zeenat
सब्र सबको अता करे मौला
जो पड़ा हो सकता है खड़ा करे मौला
Dukh ki zanjeeron ko wo kaat diya karta hai Bebahaa khushiyon ko wo baant diya karta hai Bas dua karte raho dosto uske dar par Zakhm bhi mera khuda paat diya karta hai.
Kamla singh zeenat

Tuesday 10 December 2013

ए वक़्त के मजनू मैं फ़क़त दो ही लफ्ज़ में
रख दूँगी अपना प्यार तो शर्मिंदा होगा तू
------कमला सिंह ज़ीनत

Aye waqt ke majnu main faqat do hi lafz mein Rakh dungi apna pyar to sharminda hoga tu.
Kamla singh zeenat.

चाहत की बात आप ना कीजे जनाब ए शैख़
मुझसा अगर तड़प हो खुदा आता दीद को
--------------कमला सिंह ज़ीनत
Chaahat ki baat aap na kije janab e shaikh Mujhsa agar tadap ho khuda aataa deed ko.
Kamla singh zeenat

Saturday 7 December 2013

खुश और बद की चाल फरेबी क्या जाने 
रिश्ते   नाते   दूर  करीबी   क्या    जाने 
लगती  है तो  लगती है, हम सबको  भी 
भूख  अमीरी,  भूख   गरीबी  क्या  जाने 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 

khush aur bad ki chaal farebi kyaa jane 
rishte naate dur karibi kya jane 
lagti hai to lagti hai ham sabko bhi 
bhukh amiri bhukh garibi kya jane 
------------kamla singh zeenat 
ज़िक्र जब भी होता है उसका ज़ीनत 
मुहब्बत का इंकलाब ज़िंदा होता है 
------------कमला सिंह ज़ीनत 


हर आह पे भर आती हैं आँखे ज़ीनत की 
मुंतज़िर हैं आँखें उस ज़ालिम के वास्ते
--------कमला सिंह ज़ीनत    

फ़िक्र की थकन ने झुर्रियों के लिबास से जिस्म को ढक दिया 
('ज़ीनत') जाने क्यूँ ज़िंदगी को वक़्त ने अपने लबों से डस लिया 
----------------------कमला सिंह ज़ीनत 

Friday 6 December 2013

किसी कि ज़िंदगी से खेलकर मज़िल तू क्या पायेगा 
वो जानता  नहीं ईश्वर को क्या मुँह दिखायेगा 
------------कमला सिंह ज़ीनत 

ज़मीर इंसान का गर  मर गया क्या कहिये 
हैवानियत भी तर गया ,और क्या कहिये 
--------कमला सिंह ज़ीनत 

Thursday 5 December 2013

Janta hai wo marti hun main uspar 
Ilzam bewafayi ka lagakar maat deta hai
-----Zeenat


Rukte nahi hath mere, sukhte nahi zazbaat mere
Chahti nahi phir bhi machal jate hain ehsaas mere 
-----Zeenat


Aatish -e -ishq me hawa ka jor hai jada 
Chahun na bhi to tabah ho hi jati hun
-----Zeenat


Jab bhi kafila nikalta hai lafzon ka mere 
Raste kho hi jate hai manzil ke mere 
-----Zeenat


Chalo aaj kuch khas karte hai, dil ki baat karte hain
Hasraton ki mahfil mein ehasaas kuch aaj karte hain
-----Zeenat


Lakh koshish karti hun ki mujhe galat na samjhe wo 
dabish nahi shayad zazbaton me zeenat ke use gunaahgar hi samjhta hai wo
bada lajbaab hai wo mera aaftaab hai 
main raushni uski wo mera hi chirag hai 
---zeenat


bawali ho gayi shayad uski zindgi banke 
nazarandaj karna uska mujhe khatktaa hai 
-----zeenat


jine ki chahat ne mujhko bana diya uske zist ka hissa 
wahi ruh hai meri main hun wajood uska 
-----zeenat


chahton ke bazar se kharida tha usne mujhko 
chamak shayad fiki ho gayi waqt ke sath meri 
--zeenat


chaha tha usko aaj zindgi de dun apni 
magar bandgi bhi nahi qubul us zalim ko meri 
--------zeenat


Ho gayi khatm ab shayri meri 
Khud ko dhoond ke aati hun bazm
Me wapas
---Zeenat

Wednesday 4 December 2013

lafzon ke bagiche se chune kuch lafzon ke phool zeenat ne bade pyar se 
kuch to gazal bane aur kuch shayri ban gayi meri zindgi ke kitabon me 
-----------------------------------------------kamla singh zeenat
जितनी सजदा करूँ तेरी ऐ खुदा वो ज़ीनत की ज़िंदगी से कम है 
तेरी रहमतों के बदले ज़िंदगी ले ले मेरी या खुद को मेरा कर दे 
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत
जितनी सजदा करूँ तेरी ऐ खुदा वो ज़ीनत की ज़िंदगी से कम है 
तेरी रहमतों के बदले ज़िंदगी ले ले मेरी या खुद को मेरा कर दे 
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत
जो चाहा वो मिला नहीं ,जो मिला वो चाहा नहीं,कैसी विडंबना 
पर जो मिली है दौलत, है अनमोल ज़ीनत की ज़िंदगी का 
--------------------------ज़ीनत
जो चाहा वो मिला नहीं ,जो मिला वो चाहा नहीं,कैसी विडंबना 
पर जो मिली है दौलत, है अनमोल ज़ीनत की ज़िंदगी का 
--------------------------ज़ीनत
जंग रोज़ ज़िंदगी की लड़ती हैं बेटियाँ 
जुल्म,तिरस्कार भी सहती हैं बेटियाँ 
गहराई से सोच के देखो ज़ीनत की बातों को  
ज़िंदगी को लेकिन जीवन देती हैं बेटियाँ 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 

Monday 2 December 2013

मुझे जिसकी तमन्ना थी उसे पाया उसे रखा 
दुआ मेरी सुनी रब ने तो जो चाहा वही बक्शा 
--------------कमला सिंह ज़ीनत 

तमन्नाओं के हाट में हसरतें हज़ार बिकती है 
जिसे चाहा खरीदना ज़ीनत ने था अनमोल बड़ा 
--------------कमला सिंह ज़ीनत 

tamnnaon ke haat mein hasrten hazar bikti hain
jise chaha kharidna zeenat ne thaanmol bada 
-----------------------kamla singh zeenat 

Saturday 30 November 2013

जब खुदा हमसे प्यार करता है 
आसमान से भी उतरता है 
राज़ ये बस उसी को है मालूम 
कौन जीता और कौन मरता है
--------कमला सिंह ज़ीनत 
-------------------------------
आरज़ू बहुत थी तुझे पाने की  
चाहत भी थी दिल लगाने की  
नसीब में क्या है ये जानू न 
ख्वाहिश है तुझपे जां लुटाने की 
------कमला सिंह ज़ीनत 

aarazu bahut thi tujhko pane ki
chahat bhi thi dil lagane ki 
naseeb me kya hai ye jaanu na 
khwahish hai tujhpe jaan lutaane ki
-----------kamla singh zeenat 

Wednesday 27 November 2013

चाँद पे लेके चलना मुझको, या फिर दूर सितारों पर 
बर्फ की वादी में मिल लेना या मिलना अंगारों पर 
----------------कमला सिंह ज़ीनत 
Chand pe le ke chalna mujhko,ya phir duur sitaron par
Barf ki wadi me mil lena,zeenat ya milna angaron par.
Kamla singh zeenat.

ले जाए जिसको चाहिए सीने में पाल कर 
उस बे-वफ़ा को रख दिया दिल से निकाल कर 
---------------कमला सिंह ज़ीनत 
Le jaaye jisko chahiye seene mein paal kar
Us be-wafa ko rakh diya dil se nikaal kar
-----Kamla singh zeenat.

Monday 25 November 2013

सात   फेरों का  बंधन 
सात जन्मों का वचन 
माथे पे  लाली   वरन 
होठों पे हल्की स्पंदन 

कसमें वादों का चलन 
परम्पराओं का  वहन 
मर्यादाओं का  स्वप्न 
आत्माओं का मिलन 

यही     है    गठबंधन 
यही     है    गठबंधन 
**कमला सिंह ज़ीनत 

Saturday 23 November 2013

मेरे जानिब से जब सवाल हुआ 
वो भी गुस्से से लाल-लाल हुआ 
जुल्फ लहरा दिया हवाओं में 
होश खो बैठा वो निढाल हुआ 
*********कमला सिंह ज़ीनत