Sunday 29 September 2013

कह गया था ज़ीनत लौटा दूँगा जान तेरी 
आज तो धड़कने भी गिरवी हैं पास उसके 
----------------------कमला सिंह ज़ीनत 

उकेरी थी कई लकीरें ज़ीनत यूँ ही खाली केनवास पर 
बाखुदा शक्ल वो उसकी लेता गया 
-------------------कमला सिंह ज़ीनत 

बेख़ौफ़ करती थी गुफ्तगू परछाईयों से अपने 
आज इज़ाज़त लेती हूँ ज़ीनत,अपनी तन्हाईयों से  
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

 रिमझिम बरसती बूंदों ने महका दिया दामन 
खुशियाँ खुद-बखुद चली आयीं ज़ीनत मेरे आँगन 
----------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

वो मेरे ज़ेहन में बेख़ौफ़ फिरा करता है ज़ीनत 
रूह को  क़ैद किये रहता है दीवाना वो   
------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
    चर्चामंच 1399 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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