Saturday 21 February 2015

ख़्याले यार में जिस दम तेरी सूरत उतरती है
कोई पगली तुम्हारे नाम से बनती सँवरती है
तुम्हारी याद आते ही लपक कर चूम आती है
तुम्हारे गाँव से जो रेल की पटरी गुज़रती है
डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'

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