एक ग़ज़ल देखें
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ज़ुल्म हो जब भी लड़ जाईये
ख़ौफ़ बन कर उभर जाईये
हौसला है अग र आप में
पार दरिया को कर जाईये
इतनी हिम्मत नहीं हो तो फिर
इससे बेहतर है मर जाईये
दुसरा कोई गुलशन नहीं
यह चमन है निखर जाईये
कल ज़माने को एहसास हो
छोड़ कर कुछ असर जाईये
'ज़ीनत' जी खूबसूरत ग़ज़ल
पढ़ के दिल में उतर जाईये
--कमला सिंह 'ज़ीनत'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह ! ग़ज़ल में इतनी सरलता भी छू लेती है दिल को। हमारे दिलों से गुज़रते ख़ूबसूरत एहसास तरोताज़ा करते हैं व्यथित मन को। आपसे एक गुज़ारिश है इतनी बेहतरीन ग़ज़ल में टंकण संबंधी भूल "दुसरा" यदि "दूसरा" हो जाय तो यह ग़ज़ल मुझे और भी अच्छी लगेगी। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteबहुत खूब ... सीधी सरल और गहरी भावनाएं लिए हर शेर ... कल ज़माने को एहसास हो ... बहुत ही लाजवाब और दूर तक जाने वाला शेर ...
ReplyDeleteबढ़िया।
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति, साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/
लाजवाब ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteसरलता सीधे दिल तक पंहुचती है ये बात आप की इस गज़ल पर फिट बैठती है.सादर
ReplyDeleteसरल शब्दों में सार्थक रचना ---- सादर --
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