Saturday 9 September 2017

एक ग़ज़ल देखें 
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ज़ुल्म  हो  जब  भी  लड़ जाईये 
ख़ौफ़   बन   कर  उभर   जाईये 

हौसला    है   अग र  आप    में 
पार   दरिया   को   कर   जाईये 

इतनी  हिम्मत नहीं हो तो फिर 
इससे   बेहतर   है   मर   जाईये 

दुसरा    कोई    गुलशन    नहीं 
यह  चमन    है  निखर  जाईये 

कल  ज़माने  को  एहसास  हो 
छोड़  कर  कुछ  असर  जाईये 

'ज़ीनत'  जी   खूबसूरत  ग़ज़ल 
पढ़  के  दिल  में  उतर  जाईये 
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 11 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  2. वाह ! ग़ज़ल में इतनी सरलता भी छू लेती है दिल को। हमारे दिलों से गुज़रते ख़ूबसूरत एहसास तरोताज़ा करते हैं व्यथित मन को। आपसे एक गुज़ारिश है इतनी बेहतरीन ग़ज़ल में टंकण संबंधी भूल "दुसरा" यदि "दूसरा" हो जाय तो यह ग़ज़ल मुझे और भी अच्छी लगेगी। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  3. बहुत खूब ... सीधी सरल और गहरी भावनाएं लिए हर शेर ... कल ज़माने को एहसास हो ... बहुत ही लाजवाब और दूर तक जाने वाला शेर ...

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  4. सुन्दर भावाभिव्यक्ति, साथ ही सादर आग्रह है कि मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों --
    मेरे ब्लॉग का लिंक है : http://rakeshkirachanay.blogspot.in/

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  5. लाजवाब ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  6. सरलता सीधे दिल तक पंहुचती है ये बात आप की इस गज़ल पर फिट बैठती है.सादर

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  7. सरल शब्दों में सार्थक रचना ---- सादर --

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