Wednesday 18 November 2015

देखना गौ़र से 
छोङ आई हूँ उसी कमरे में
उसी बिस्तर पर
सिरहाने के नीचे तकिये की ओट में
मीठी मीठी यादें 
तुम्हारे लिये
उन्हें संभाल कर रखना
धुंधली नीली रोशनी में बिखरे पडे़ होंगे
हमारे एहसास
बटोर लेना
मोगरे की खूशबू में पेवस्ता
रातरानी की महक
बेलगाम फैल रही होगी अभी तक
सम्भाल कर रखना
फिर मिलेंगे उसी नीली रोशनी तले
खूशबूदार एहसास के साथ।
___कमला सिंह "ज़ीनत "

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