Monday 18 May 2015

वो ताज़े फूल का झूला था जिसमें झूल गई
न चाहा फिर भी  दिलो जान से  क़बूल गई
अजब हुआ ये असर मुझपे क्या बताएँ हम
किसी को याद ही रखने में खुदको भूल गई

डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'

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