Monday 2 March 2015

एक ग़ज़ल पेश है 
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क्या से क्या हो गया है ये संसार 
टूट  कर  बिखरे  हुए   हैं सब तार 

जिसको  देखो   वही  परीशाँ   है
जाने किस रोग से है सब बीमार 

कोई  खुश भी नहीं है दुनियां में 
ये क़यामत  का  है अजी आसार 

दिल  में नफरत का एक मेला है 
हर  कोई  कर रहा है खुद पे वार 

सच  को  तन्हा  ही  छोड़  देते हैं
झूठी  बातों  पे  लोग  हैं   तैयार  

लिखिए 'ज़ीनत' ग़ज़ल को परदे में 
ये  ज़माना  बहुत  ही  है  हुशियार 
---डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'

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