Thursday 9 October 2014

मेरी एक ग़ज़ल आपके हवाले 
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मेरे  पहलु  में  बेक़रार  आया 
फूल दामन में लेके ख़ार आया 

मुझको पल भर न मिल सकी फुर्सत 
जब उन्हें मुझ पर  ऐतबार आया 

मेरी खामोशियाँ सिसकती रहीं 
वह  सदाओं  में बार -बार आया 

कौन है जिसको तेरी दुनियां में 
मौत के नाम पर क़रार आया 

या  इलाही  यह कैसी मंज़िल है 
अपने क़ातिल पे मुझको प्यार आया 

'ज़ीनत' दिल का यहाँ भरोसा क्या 
एक   टूटा  तो चार -चार आया 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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