Sunday 12 October 2014

दोस्तों आज मैं वृद्धाश्रम गई और उनकी आँखों में जो आंसू और दर्द देखा अपनों के लिए, और जो मैंने महसूस किया वो बताना चाहती हूँ -----
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मेरी आँखों ने देखे हैं तेरे ग़म के समंदर को 
तो कैसे भूल जाऊं मैं,भला ग़मनाक मंज़र को 
तड़पती रूह तेरी है, दुआओं की है तू देवी 
तू करती है छमा उनको,चुभोए हैं जो नश्तर को
महसूसा है जो इस दिल ने, तेरा सजदा मैं करती हूँ
बिखेरा फूल हैं तूने,सदा सुनसान बंजर को
तुम्हारी कोख से देवी ये है संसार की रोनक
तुम्हीं ने देवता,देवी है पाला और सिकंदर को
ये कहने में नहीं 'जी़नत' को कोई भी हिचक ऐ माँ
तुम्हारी मस्जिदों को है ज़रुरत और मंदिर को
____कमला सिंह "ज़ीनत "

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