Wednesday 8 October 2014

मेरी एक ग़ज़ल 
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जिस्म है लेकिन जान नहीं है 
तू जो  नहीं  तो  शान नहीं  है 

होंठ   हमारे  पड़   गए  पीले 
मुरली  है  पर  तान   नहीं  है 

तुझ से   दूर गए  तो समझो 
मेरी   भी   पहचान   नहीं  है

भूल  के  तुझको  जीना यूँ है 
फूलों संग  गुलदान  नहीं  है 

प्यार के बदले प्यार दे मुझको 
वरना  तू  इंसान   नहीं   है 

'ज़ीनत' को  दुःख  देनेवाला 
निर्धन  है  धनवान  नहीं  है
----कमला 'सिंह ज़ीनत' 

10 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-10-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1761 में दिया गया है
    आभार

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  3. भूल के तुझको जीना यूँ है
    फूलों संग गुलदान नहीं है
    प्यार के बदले प्यार दे मुझको
    वरना तू इंसान नहीं है
    ..सच जिसके दिन में प्यार नहीं वह कैसा इंसान!
    बहुत सुन्दर

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  4. बहुत ही सुन्दर गज़ल। "तुझ से दूर गए तो समझो
    मेरी भी पहचान नहीं है"
    बहुत सुन्दर पक्तियाँ। स्वयं शून्य

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  5. वाह ....निहायती खुबसुरत और उम्दा गजल


    कृपया मेरे ब्लॉग तक भी आयें, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)

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