Tuesday 16 September 2014

एक अमृता और ____________________
वाह रे मेरी उजली चादर हजा़र पन्नों की थान क्या खूब रही मेरी बिदायी क्या खूब दिया क़फ़न तुमने मेरा लिखना कितना पसंद है तुम्हें चलो तो फिर लिखती हूँ मैं क़्यामत तक के सफ़रनामे को एक कोना बचा रखूँगी फिर भी तुम आना तो अपनी कूची साथ लाना लिख जाना इश्किया रंगसाजी़ से अपने और हमारे बीच के रंग रंग को आसमान लिखूँगी सितारे टाकूँगी जड़ दूँगी कुछ चाँद बिठा दूँगी एक सूरज तुम सा, हू -ब- हू अल्फा़ज़ की सरसर हवाओं से लहरेदार लिखूँगी एक नज़म इश्कि़या मैं तो बाद मरने के भी तुझमें ही समायी बैठी हूँ रंगसाज़ यह सफेद क़फ़नी भी जानती है इस बात को तो क्यूँ न लिखू़ँ तुमको खुद को और हमारे तुम्हारे बीच के अटूट बंधन को एक खुशबू को एक हयात को एक कशिश को आना तो अपनी कूची साथ लाना और कुछ रंग भी मेरे रंगसाज़
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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