Wednesday 28 October 2015

•••••••••••••••GHAZAL•••••••••••••••••
गुलशन का तेरे किस्सा कल कौन सुनाएगा
कोई भी यहाँ आकर आंसू न बहाएगा
शैतान नूमा इंसां घर - घर को जलाएगा
इस आग को ऐसे में फिर कौन बुझाएगा
होगा जो पड़ोसी ही अपनों से डरा सहमा
मुश्किल की घडी़ में फिर वो कैसे बचाएगा
घर से ही नहीँ जिसको तहज़ीब मिली थोड़ी
आवारा वही बच्चा नफरत को बढाएगा
मंदिर तो बने पल में मस्जिद भी लगे हाथों
टूटे हुए इस दिल को अब कौन बनाएगा
छीना गया बच्चों से क्यूँ बाप के साये को
कल कौन यतीमों को अब राह दिखाएगा
कम्बख्त सियासत है कमज़र्फ़ सियासत दां
हर ज़ख्म पे मरहम ये रूपयों का लगाएगा
जिस हाथमें पत्थर है और सोचमें पागलपन
दावा तो उसी का है गुलशन को सजाएगा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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