Thursday, 29 October 2015
आखिर क्यूं है ये बेचैनी क्यूँ है इतना खिंचाव यह जकड़न और तड़पन बेकरारी के जाले में उलझा उलझा मन नासमझ सी दीवानगी बेलगाम सांसों का हुजूम वक्त़ बे वक्त़ इक तलाश नज़रों पर साजिशी यलग़ार यह किसका सोज़ है यह कैसी साज़ है यह कौन सी आवाज़ है सर से पांव तलक झनझना उठती हूँ मैं बस करो अब बस भी करो याद न आओ हिचकियों की आमद से परिशान हूँ मैं बिलकुल तुम्हारी तरह हां उसी तरह कमला सिंह 'ज़ीनत'
Wednesday, 28 October 2015
एक ग़ज़ल हाज़िर है आप सबके हवाले
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रोते रहते हैं सिसकते कम हैं
इस तरह पुतलियों में हम नम हैं
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रोते रहते हैं सिसकते कम हैं
इस तरह पुतलियों में हम नम हैं
सारी दुनियाँ खुदा सी होती गयी
हम ही बस इस ज़हान में ख़म हैं
हम ही बस इस ज़हान में ख़म हैं
नाचती है सुरूर में परियाँ
हम अकेले ही पी रहे ग़म हैं
हम अकेले ही पी रहे ग़म हैं
लग्जिशेँ आई नहीं , भटके क्या
जिस जगह थे वहीँ -वहीँ जम हैं
जिस जगह थे वहीँ -वहीँ जम हैं
दर्द ने जब भी हमको लरज़ाया
घुंघरुओं की तरह बजे छम हैं
घुंघरुओं की तरह बजे छम हैं
गुल हैं ''ज़ीनत 'हमीं हैं खुशबू भी
दुश्मनों के लिए हमीं बम हैं
दुश्मनों के लिए हमीं बम हैं
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
•••••••••••••••GHAZAL•••••••••••••••••
गुलशन का तेरे किस्सा कल कौन सुनाएगा
कोई भी यहाँ आकर आंसू न बहाएगा
कोई भी यहाँ आकर आंसू न बहाएगा
शैतान नूमा इंसां घर - घर को जलाएगा
इस आग को ऐसे में फिर कौन बुझाएगा
इस आग को ऐसे में फिर कौन बुझाएगा
होगा जो पड़ोसी ही अपनों से डरा सहमा
मुश्किल की घडी़ में फिर वो कैसे बचाएगा
मुश्किल की घडी़ में फिर वो कैसे बचाएगा
घर से ही नहीँ जिसको तहज़ीब मिली थोड़ी
आवारा वही बच्चा नफरत को बढाएगा
आवारा वही बच्चा नफरत को बढाएगा
मंदिर तो बने पल में मस्जिद भी लगे हाथों
टूटे हुए इस दिल को अब कौन बनाएगा
टूटे हुए इस दिल को अब कौन बनाएगा
छीना गया बच्चों से क्यूँ बाप के साये को
कल कौन यतीमों को अब राह दिखाएगा
कल कौन यतीमों को अब राह दिखाएगा
कम्बख्त सियासत है कमज़र्फ़ सियासत दां
हर ज़ख्म पे मरहम ये रूपयों का लगाएगा
हर ज़ख्म पे मरहम ये रूपयों का लगाएगा
जिस हाथमें पत्थर है और सोचमें पागलपन
दावा तो उसी का है गुलशन को सजाएगा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
दावा तो उसी का है गुलशन को सजाएगा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
सुनो इक बात ऐ समधन हमारी
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सुनो इक बात ऐ समधन हमारी
हमारी है हर इक चिंता तुम्हारी
हमारी है हर इक चिंता तुम्हारी
सजेगा घर हमारा हर खुशी से
मिटेगा अब अंधेरा रौशनी से
मिटेगा अब अंधेरा रौशनी से
हमारा लाडला दुल्हा बनेगा
हम सबके वास्ते साया बनेगा
हम सबके वास्ते साया बनेगा
बहू की शक्ल में लाएंगे बेटी
हमारी और तुम्हारी एक रोटी
हमारी और तुम्हारी एक रोटी
रहेगी घर में वो मेरे सलामत
ये रिश्ता यूँ रहेगा ता-क्यामत
ये रिश्ता यूँ रहेगा ता-क्यामत
तेरे आंसू मेरे आंसू बनेंगे
उधर तुम हम इधर सासू बनेंगे
उधर तुम हम इधर सासू बनेंगे
नया अब सिलसिला सिलते हैं हम तुम
चले आओ गले मिलते हैं हम तुम
चले आओ गले मिलते हैं हम तुम
कमला सिंह 'ज़ीनत'
Tuesday, 20 October 2015
आओ फिर से बहार बनकर
चमन वालों ने पुकारा है
तितलियाँ आंखें बिछाए पड़ी हैं
पत्तियों पर शायराना शबनमी बूटे हैं
भंवरे कतार में खड़े हैं
आमद की खुशबू पसरी है
मैं भी वहीं बैठी हूं
हरी घांस पर
आओ न बहार
तुम्हारे होने और पास बैठने के पल में
घांस सहलाना तोड़ना और उसी जगह
छोड़ कर लौट जाना
बातें सुनी अनसुनी
कही अनकही
आओ न
आओ फिर से बहार बनकर
चमन वालों ने पुकारा है
तितलियाँ आंखें बिछाए पड़ी हैं
पत्तियों पर शायराना शबनमी बूटे हैं
भंवरे कतार में खड़े हैं
आमद की खुशबू पसरी है
मैं भी वहीं बैठी हूं
हरी घांस पर
आओ न बहार
तुम्हारे होने और पास बैठने के पल में
घांस सहलाना तोड़ना और उसी जगह
छोड़ कर लौट जाना
बातें सुनी अनसुनी
कही अनकही
आओ न
आओ फिर से बहार बनकर
_________कमला सिंह 'ज़ीनत'
Monday, 5 October 2015
गुलशन का तेरे किस्सा कल कौन सुनाएगा
कोई भी यहाँ आकर आंसू न बहाएगा
कोई भी यहाँ आकर आंसू न बहाएगा
शैतान नूमा इंसां घर - घर को जलाएगा
इस आग को ऐसे में फिर कौन बुझाएगा
इस आग को ऐसे में फिर कौन बुझाएगा
होगा जो पड़ोसी ही अपनों से डरा सहमा
मुश्किल की घडी़ में फिर वो कैसे बचाएगा
मुश्किल की घडी़ में फिर वो कैसे बचाएगा
घर से ही नहीँ जिसको तहज़ीब मिली थोड़ी
आवारा वही बच्चा नफरत को बढाएगा
आवारा वही बच्चा नफरत को बढाएगा
मंदिर तो बने पल में मस्जिद भी लगे हाथों
टूटे हुए इस दिल को अब कौन बनाएगा
टूटे हुए इस दिल को अब कौन बनाएगा
छीना गया बच्चों से क्यूँ बाप के साये को
कल कौन यतीमों को अब राह दिखाएगा
कल कौन यतीमों को अब राह दिखाएगा
कम्बख्त सियासत है कमज़र्फ़ सियासत दां
हर ज़ख्म पे मरहम ये रूपयों का लगाएगा
हर ज़ख्म पे मरहम ये रूपयों का लगाएगा
जिस हाथमें पत्थर है और सोचमें पागलपन
दावा तो उसी का है गुलशन को सजाएगा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
दावा तो उसी का है गुलशन को सजाएगा
--------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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