Wednesday 7 August 2013

दिल की लगी जिंदगी से

आ जिंदगी तुझे गले लगा लूँ मैं 
सीने में तुझको छुपा लूँ मैं 
दिल के ज़ख्मों पे मरहम लगा दूँ मैं 
वजूद को रूह से मिला दूँ मैं 

क्यों दूर हो अब तक मुझसे 
आओ न जीना सीखा दूँ मैं 
क्यों प्यास है तुझ में इतना 
आओ न प्यास बुझा दूँ मैं 
घुटती हो क्यूँ तन्हाईयों में 
आओ ना चिराग दिल का जला दूँ मैं 

भटकती हो वीराने में अक्सर 
तुमको मंजिल से मिला दूँ मैं 
पगडण्डीयों  पे चलती हो क्यूँ 
मंजिल का रास्ता दिखा दूँ मैं 

सिसकती हो क्यों शबे फुरकत में 
दाग तेरे दिल का आज मिटा दूँ मैं 
तड़पती हो किसी की चाहत में 
मुझसे ही दिल लगा लो न 
अकेले यूँ ही समझो न खुद को 
मुझे हम सफ़र बना लो न 
------------------कमला सिंह जीनत 
                    ०७/०८/१३ 

2 comments:

  1. वाह वाह क्या बात है धमाकेदार बहुत खूब

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