Friday, 23 May 2014

------(nazm) इश्क--------------
इश्क इक फूल है एहसास ए चमन का यारो जब भी खिलता है तो इक खुश्बू बिखर जाती है बागबानो में हर इक सिम्त निखार आता है तितलियां रंग ए जुनूं पर पे लिये फिरती हैं भौंरे इक राग ए सुकूं गाते निकल पडते हैं स्याह रात चिरागां किये जुगनू सारे महफिल ए इश्क में जगमग किये बल खाते हैं इश्क न होतो यह सुनसान है दुनिया सारी इश्क बंदे की हकीकत है ज़माने भर में इश्क भगवान को भगवान बना देता है इश्क अल्फाज़ में दौड़े तो पयम्बर कर दे इश्क हो कैस को सहरा में वह पत्थर खाए इश्क हो शाह को तो ताजमहल बनवा दे इश्क आबिद को अगर हो तो मलंगा कर दे इश्क फन्कार को हो जाए तो कुछ खास करे इश्क मुझको भी हुआ शेरो सुखन से क्या बात इश्क ही इश्क मेरी रुह में शामिल दिन रात
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'

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