Friday, 30 May 2014

कत्ल ए आम
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ढल चुकी है शाम
हो रहा है अंधेरा
पहाड़ियों से उतर रहे हैं बे-ज़बान जीव
झूंड में शामिल हैं कुछ भेडिये भी
तराई तक आते आते हो चुका होगा स्याह अंधेरा
फैल रहे हैं भेडिये मंसूबों के साथ
हर चाल और हर बिसात पर कर रहे हैं कब्जा
होगा बहुत शातिर तरीके से झूंड पर हमला
केवल भौंकेंगे भेडिये
डर जायेंगे जीव
मचेगी भगदड
और कुचल कर एक दूसरे को
मर जाएंगे बे-शुमार जीव
होगी जब सुब्ह
मुजरिम अपनी नाखून दिखाएंगे
भेडिये पारसा कहलाएंगे
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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