Saturday, 3 May 2014

आसरे की बग्गी 
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सुना था एक गरीब को 
दिया था त्रिलोकिया ने 
आसरा 
अपने घर के 
सुनसान कोनहट्ठे में 
वो दिन भर 
माँगा करती थी भीख 
गाँव जवार में। 
सुना  था, 
उसके मरते ही 
उसकी गुदड़ी से 
निकले थे बहुत सारे सिक्के 
चाँदी और सोने के 
गठरी और गुदड़ी के बीच 
त्रिलोकिया और त्रिलोकी सेठ के बीच 
बड़े शान से गुज़रती थी 
एक आसरे की बग्गी 
सुना था, 
हाँ,
मैंने सुना था। 
---कमला सिंह 'ज़ीनत' 

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