-----------ग़ज़ल-----------
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खुद को शाहाकार कीजिये ,ज़िंदगी से प्यार कीजिये
जब तलक ना मंज़िलें मिलें ,खुद पे ऐतबार कीजिये
इश्क़ के बाज़ार में कहीं आबरू लुटा ना आईये
अपने वालिदेन के लिए खुद को पायेदार कीजिये
फूल बन खिलेंगे एक दिन,खुशबुएँ बसेंगी आपमें
गुलिस्ताँ में सुर्खरु खड़े रुत का इंतज़ार कीजिये
हम सभी में है जला रहा नफरतों की आग,कौन है
है छुपी हुयी दरिंदगी ढूँढ़ कर शिकार कीजिये
है फ़िज़ा-फ़िज़ा में गंदगी,घुट रहा है दम हर एक का
फूल फूल बन के आप सब बादे नव बहार कीजिए
मशविरा है जीनत का,मसअला ये जिंदगी का है
ज़िंदगी है कीमती बहुत इसको बावकार कीजिये
--------------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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