हाल बेहतर सुनाये काफी है
वो फ़क़त मुस्कुराए काफी है
मेरी गज़लें पढ़े , पढ़े न पढ़े
सिर्फ़ वो गुनगुनाए काफी है
उससे मुझको तलब नहीं कुछ भी
मुझको अपना बताए काफी है
वो बरसता रहे ज़माने में
एक पल मुझ पे छाए काफी है
नाम मेरा वो जोड़ कर ख़ुद में
मेरा रूतबा बढाए काफी है
उसको सोंचूं मैं रात -दिन 'ज़ीनत'
नींद मेरी उड़ाए काफी है
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteआदरणीय कमला जी, नि:शब्द हूं आपकी गज़लों को padhakar.बहुत अच्छा लिखती हैं आप.अब आपके ब्लोग पर नियमित आना होगा.
ReplyDeleteसादर
Shukriya Aparna ji
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