टुट जायेंगे यकीनन वह सारे शीशे के बुत
इक धमक काफी है लफ्जों को जो जुंबिश दे दूँ
कमला सिंह 'ज़ीनत'
यूँ तो रुखसार ही होते हैं किताबी पन्ने
दीदवाले तो मोकम्मल ही पढ़ा करते हैं
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
मुझको दीवारों में जड़ दे
या फिर मुझको पागल कर दे
आँखें मेरी सूख चुकी हैं
चल तू आँख में आंसू भर दे
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
मुझको दीवारों में जड़ दे
ReplyDeleteया फिर मुझको पागल कर दे
आँखें मेरी सूख चुकी हैं
चल तू आँख में आंसू भर दे
बहुत सुन्दर !
new post ग्रीष्म ऋतू !
behad shukriya sir !!
Deleteबढ़िया सुंदर लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
thanku Ashish bhai !!
Deleteसुन्दर भाव...
ReplyDeleteshukriya !!
ReplyDeletedil se aabhar aapka !!
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