Wednesday 8 November 2017

एक ग़ज़ल आप सबके हवाले 
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मैं  ख़ता  करूँ  तो  ख़ता लिखो 
मैं  वफ़ा  करूँ  तो  वफ़ा  लिखो 

मेरी  आँख   देखो  भी  ग़ौर  से 
जो  मैं   डबडबाऊँ  दुआ  लिखो 

मेरी   ज़ुल्फ़  लहराए   नागिनी 
तो  कलम  उठा  के  हवा लिखो 

कहाँ  हम हों ,तुम हो पता नहीं 
इसे  लिखने  वाले जुआ लिखो 

मैंने  ज़ख्म  सारे   दिखा   दिए 
ऐ  तबीब  अब तो  दवा  लिखो 

जहाँ लिखना 'ज़ीनत' को फूल है 
उसे  शाख़   बिलकुल हरा लिखो 
---कमला सिंह 'ज़ीनत' 

19 comments:

  1. बेहतरीन
    सुबह का सलाम
    सादर

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  2. लाज़वाब...बहुत सुंदर

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  3. मैंने ज़ख्म सारे दिखा दिए
    ऐ तबीब अब तो दवा लिखो।

    क्या कहने। wahhhhhh। बहुत लाज़वाब। शानदार। जानदार। दिलकश।

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  4. लाज़वाब गज़ल,वाह! बेहद दिलकश.
    बधाई.
    सादर

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  5. सुंदर लाज़वाब गज़ल. वाह!इसे सुनने में बहुत मज़ा आता. बधाई स्वीकार करें आदरणीय कमला जी.
    सादर

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    1. काश आप मेरे सामने होती और मैं आपको सुना पाती , मुझे बहुत ख़ुशी होगी कभी सुना पाई तो ।

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  7. बहुत खूब लिखा है

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  8. बेहद शुक्रिया आपका

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  9. मैंने ज़ख्म सारे दिखा दिए
    ऐ तबीब अब तो दवा लिखो....
    बहुत दिलकश शेर, खूबसूरत गजल। बधाई।

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  10. वाह!!!
    बेहतरीन शेरों से सजी लाजवाब गजल.....

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