Monday 4 November 2013

बेखौफ मेरे गेसुओं से खेलते हैं ख्य़ाल मेरे 
ऐ ज़ीनत पनाह तेरा उसे भी पसंद है शायद 
----------------------कमला सिंह ज़ीनत 

लिखता है लहू से खतूत-ऐ-इश्क़ ज़ीनत तुझको 
मज़मून समझाने का हुनर भी उसे आता है 

इस कदर जुनूँ सवार है ग़ज़ल-ऐ-शायरी मुझ पर 
ऐ वक़्त ठहर उन लम्हों में डूब जाने दे मुझे 
-----------कमला सिंह ज़ीनत 

No comments:

Post a Comment