Saturday, 11 November 2017

तुझसे  किया  है  प्यार यही तो  कुसूर है 
इस  बात  पे भी  यार क़सम  से  गुरुर है 

रहती  हूँ  तेरी याद मेँ  मसरुफ़  रात दिन 
छाया  हुआ  है  मुझ पे  तेरा  ही सुरूर है 

क्या बात है की तुझमेँ ही रहती हूँ गुमशुदा 
तुझसे  कोई पुराना  सा  रिश्ता   ज़रूर है 

हर वक़्त जगमगाती हूँ उस रौशनी से मैं 
सूरज  है मेरा ,चाँद , तू  ही  मेरा   नूर है 

दीवाने पन को देख कर  हैरत में लोग हैं 
नफ़रत  का  देवता  भी  यहाँ   चूर-चूर है 

कहते  हैं जिसको  लोग पागल है बावला 
'ज़ीनत'  वही  तो मेरा  सनम बा-शऊर है 

---कमला सिंह 'ज़ीनत'

Friday, 10 November 2017

प्यार मुहब्बत  ख़ुशियाँ जिस  पर यारों हमने वार दिया 
उस  ज़ालिम   ने   बेदर्दी  से   तन्हा  करके  मार  दिया 

उसकी  रूह   से  कोई   पूछे   वो   सच   बात  बताएगी 
जंगल  को  गुलज़ार  बना कर  मैंने  इक  संसार  दिया 

बीच लहर में जिस दिन कश्ती उसकी थी मजबूर बहुत 
मैंने  अपनी  तोड़  दी  कश्ती  और  उसे  पतवार  दिया 

हाय  रे  मेरी  क़िस्मत  कैसी  साजिश  तेरी  है ज़ालिम 
जब   भी जीत का मौक़ा आया जीत के बदले हार दिया 

'ज़ीनत' तुझसे क्या दुख रोती  सबका मालिक तू मौला 
साँसें  दी  हैं  शुक्र  है  तेरा  लेकिन  क्यों  बीमार   दिया 

----कमला सिंह 'ज़ीनत'

Wednesday, 8 November 2017

एक ग़ज़ल आप सबके हवाले 
-------------------------------
मैं  ख़ता  करूँ  तो  ख़ता लिखो 
मैं  वफ़ा  करूँ  तो  वफ़ा  लिखो 

मेरी  आँख   देखो  भी  ग़ौर  से 
जो  मैं   डबडबाऊँ  दुआ  लिखो 

मेरी   ज़ुल्फ़  लहराए   नागिनी 
तो  कलम  उठा  के  हवा लिखो 

कहाँ  हम हों ,तुम हो पता नहीं 
इसे  लिखने  वाले जुआ लिखो 

मैंने  ज़ख्म  सारे   दिखा   दिए 
ऐ  तबीब  अब तो  दवा  लिखो 

जहाँ लिखना 'ज़ीनत' को फूल है 
उसे  शाख़   बिलकुल हरा लिखो 
---कमला सिंह 'ज़ीनत' 

Friday, 3 November 2017

हाल   बेहतर   सुनाये  काफी  है 
वो   फ़क़त  मुस्कुराए  काफी  है 

मेरी  गज़लें   पढ़े , पढ़े   न   पढ़े
सिर्फ़  वो   गुनगुनाए   काफी  है 

उससे मुझको तलब नहीं कुछ भी 
मुझको  अपना  बताए  काफी  है  

वो    बरसता    रहे    ज़माने   में 
एक  पल  मुझ  पे  छाए काफी है 

नाम  मेरा  वो  जोड़  कर ख़ुद  में 
मेरा   रूतबा    बढाए   काफी   है 

उसको सोंचूं मैं रात -दिन 'ज़ीनत'
नींद    मेरी    उड़ाए    काफी   है 
---कमला सिंह 'ज़ीनत'