एक रिश्ता ऐसा भी
मनुष्य के झूठे दंभ का
जिसे वो हर वक़्त ओढ़े रहता है
लिबास झूठ और,
दिखावे का
जहाँ दूर दूर तक कोई
चिंगारी नहीं भी नहीं
उन रिश्तों के एहसासों की
जिससे दिल से रिश्ते जुड़े हैं।
दर्द की चुभन हो
जिसके हसने से सुकून हो
क्या कभी सोचा है ?
उस रिश्ते को ?
जिसने तुम्हारे जन्म से लेकर अब तक
सिर्फ खुशियां और दुआएं दी हैं
कभी कुछ नहीं चाहा सिवा
एक या दो बातों के
अपनापन और प्यार। .......
उसकी आँखों कि तड़प
बयां करती है
तुम्हारी बेरुखी,
झूठे आडम्बर,
तरसती हैं वो बाहें आज भी
तुम्हें एक बार अपनी
छाती से लगाने के लिए
तुम्हें दुआ से चूमने के लिए
क्या तुम समझ पाये ?
मुझे दर्द है उस चुभन की,
मुझे दुःख है तुम्हारी बेरुखी पर,
मुझे दुःख है अपने कोख पर,
मुझे दुःख है खुद पर,
क्यूंकि
मैं वो दीया हूँ जो बुझने वाली है
मैं वो दर्द हूँ जो तड़पती है
वो दयार हूँ जो फट चुकी हूँ
वो दरख्त हूँ जो सुख चुकी है
आखिरकार … …।
मैं भी एक
जीता जागता एहसास हूँ
एक माँ हूँ
तुम्हारे लिए दुआ हूँ
तुम्हारे लिए दुआ हूँ
सिर्फ प्यार और दुआ
------कमला सिंह 'ज़ीनत' 2 april 2014
बढ़िया बहुत बढ़िया रचना कमला जी , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिन्दी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
bahut bahut shukriya dilbaag ji
ReplyDeletebahut shukriya aashish ji
ReplyDeleteएक मां के मन को भाव को दर्शाती मन छूने वाली रचना
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