Friday, 11 April 2014

एक सवाल तुमसे 
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हर दिन सिर्फ एक ही शिकायतहै मेरी  
तुम बदल गए हो 
और तुम्हारा वही घिसा पिटा उत्तर 
नहीं तो ,मैं आदमी हूँ 
समाज से घिरा हुआ 
ज़िम्मेदारियों में फसा हुआ 
दोस्तों में उलझा हुआ 
हर तबके से जुड़ा हुआ
सबके दुःख ,सुख का साथी हूँ 
तुम नहीं समझती। 
हाँ.…  
मैं नहीं समझती 
तुम सबके कुछ न कुछ हो 
मेरे लिए क्या है ?
मेरी जगह सिर्फ दिल में ?
खानापूर्ति के लिए ?
तुम्हारा प्यार हूँ ?
सच में ?
खुद से पूछो 
और सोचो 
फिर उत्तर देना मुझे 
क्या हूँ … .... मैं 
सिर्फ ....... 
चंद  लम्हों का प्यार !!
--कमला सिंह 'ज़ीनत'

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