मेरी एक और ग़ज़ल हाज़िर है आप सबके लिए
------------------------------ ------
लिख गए खुद को उसके पाने पर
जैसे लिखा हो दाने दाने पर
हो रहा बावला इधर से उधर
पर रहा वो मेरे निशाने पर
मेरी दौलत है ज़िंदगी की वो
क्यूँ न हो सब्र उस ख़ज़ाने पर
उसको अफ़सोस बहुत होता है
एक आँसू मेरे बहाने पर
ज़िंदगी होती है मायूस बहुत
एक और दिन मेरे घटाने पर
लोग ज़ीनत निगाह रखते हैं
मेरे बस एक मुस्कुराने पर
---------कमला सिंह 'ज़ीनत'
------------------------------
लिख गए खुद को उसके पाने पर
जैसे लिखा हो दाने दाने पर
हो रहा बावला इधर से उधर
पर रहा वो मेरे निशाने पर
मेरी दौलत है ज़िंदगी की वो
क्यूँ न हो सब्र उस ख़ज़ाने पर
उसको अफ़सोस बहुत होता है
एक आँसू मेरे बहाने पर
ज़िंदगी होती है मायूस बहुत
एक और दिन मेरे घटाने पर
लोग ज़ीनत निगाह रखते हैं
मेरे बस एक मुस्कुराने पर
---------कमला सिंह 'ज़ीनत'
No comments:
Post a Comment