---------ग़ज़ल-----------
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उससे मैं इतना प्यार करती हूँ
पल में जीती हूँ पल में मरती हूँ
प्यार कि रोज़ एक इक सीढ़ी
उसकी यादों के बीच चढ़ती हूँ
गैर मुमकिन है उसको खो देना
बस इसी बात से ही डरती हूँ
एक बुत हूँ मगर मैं उसके लिए
रोज़ बनती हूँ और संवरती हूँ
टूट कर मैं ज़मीं पे इक तारा
उसकी चाहत में ही उतरती हूँ
प्यार वो बेपनाह करता है
मैं भी उसके ही सिम्त बढ़ती हूँ
क़ैद से उसके न उड़ूँ ज़ीनत
इसलिए बाल-ओ- पर कतरती हूँ
-------कमला सिंह ज़ीनत
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उससे मैं इतना प्यार करती हूँ
पल में जीती हूँ पल में मरती हूँ
प्यार कि रोज़ एक इक सीढ़ी
उसकी यादों के बीच चढ़ती हूँ
गैर मुमकिन है उसको खो देना
बस इसी बात से ही डरती हूँ
एक बुत हूँ मगर मैं उसके लिए
रोज़ बनती हूँ और संवरती हूँ
टूट कर मैं ज़मीं पे इक तारा
उसकी चाहत में ही उतरती हूँ
प्यार वो बेपनाह करता है
मैं भी उसके ही सिम्त बढ़ती हूँ
क़ैद से उसके न उड़ूँ ज़ीनत
इसलिए बाल-ओ- पर कतरती हूँ
-------कमला सिंह ज़ीनत
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