Thursday, 10 April 2014

कुछ फूल भी 
कुछ ख़ार भी 
ये ज़िंदगी के बहार भी 
पल में खट्टी 
पल में मीठी 
ज़िंदगी के ग़ुबार भी 
हँसा दिया कभी 
रुला दिया कभी 
ये ज़िंदगी के दुलार भी 
गले भी लगाया 
गले से हटाया
ये ज़िंदगी है खुमार भी
ये ज़िंदगी है प्यार भी
ये ज़िंदगी है बहार भी
....कमला सिंह "ज़ीनत "

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