Tuesday, 29 April 2014

एक ग़ज़ल मेरी सोच ,मेरा नज़रिया
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हर तरफ सिर्फ मारा मारी है
आग के लहजे में चिंगारी है

आज भी देते हैं मेहमाँ का पता
अब परिंदों में ही खुद्दारी है

कम ही किरदार से बड़े हैं लोग
हर बड़ा नाम तो अखबारी है 

रस्में उल्फत निभा रहे हैं लोग
दिल में एक सर्द जंग जारी है

फूल नश्तर में ढल गए हैं सभी
शाख़ पे काँटों की फुलवारी है

ये क़यामत नहीं तो क्या 'ज़ीनत'
जिस तरफ देखिये बमबारी है
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-05-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

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  2. आज भी देते हैं मेहमाँ का पता
    अब परिंदों में ही खुद्दारी है

    bahut khoob

    shubhkamnayen

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  3. कम ही किरदार से बड़े हैं लोग
    हर बड़ा नाम तो अखबारी है


    वाह, जीनत जी, बहोत खूब।

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