उलझनो से लिपटी रहती है हर वक़्त ये साँसें मेरी
उलझनें रूह बन गयी हैं या रूह उलझनों का गुलशन
---------कमला सिंह 'ज़ीनत'
पास अब कभी न आउंगी,दिल को भी यही समझाउंगी
वो था कभी नहीं 'ज़ीनत' का,रोज़ ज़ख्मों को सहलाऊँगी
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'
आज बे-वफ़ा का ज़ख़्म भी सुकूं देता है 'ज़ीनत' को
बरसों बाद बादल भी घुमड़े रहे हैं इन बंज़र आँखों में
------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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