Monday, 7 April 2014

उलझनो से लिपटी रहती है हर वक़्त ये साँसें मेरी 
उलझनें रूह बन गयी हैं या रूह उलझनों का गुलशन 
---------कमला सिंह 'ज़ीनत'

पास अब कभी न आउंगी,दिल को भी यही समझाउंगी 
वो था कभी नहीं 'ज़ीनत' का,रोज़ ज़ख्मों को सहलाऊँगी 
----------कमला सिंह 'ज़ीनत'

आज बे-वफ़ा का ज़ख़्म भी सुकूं देता है 'ज़ीनत' को 
बरसों बाद बादल भी घुमड़े रहे  हैं इन बंज़र आँखों में 
------कमला सिंह 'ज़ीनत'  

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