Thursday, 17 July 2014

मुझे वह लिखना है
_____________मुझे वह लिखना है ।

सोचने और लिखने के बीच
एक खामोश एहसास भी पलता रहता है
चलता रहता है
अंदर ही अंदर 
आडी़ तिरछी लकीरों में
कविता की एक परत धुँधली सी
काश की उसे लिख पाती 
उस परत को उधेड़ पाती मैं कभी
नहीं कर पाती हूँ
उस तिलस्माती एहसास को
लिख पाने का साहस
ताला सा जडा़ है
वह ताला जिसकी चाभी तो है मेरे पास
पर खोल पाने का हुनर नहीं मुझमें
ज़बानी जमा-खर्च की बुनियाद पर खडी़
मेरी अपनी ही कविताएँ
नहीं भाती हैं मुझे
मुझे वह लिखना है
जो सोचने और लिखने के बीच
एहसास की लकीरों में चलता रहता है ।
---कमला सिंह 'ज़ीनत'

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