Saturday, 5 July 2014

सिर्फ तुम ही तुम थे -------------- जब जुल्म की आँधियों का हमला हुआ जब अंधेरा छाया था चारो ओर जब दूर दूर तक कोई साया न था जब हर तरफ छाई थी उदासी जब मेरी रूह तडप रही थी जब मेरी आवाज़ घुट रही थी जब मुसीबत का पहाड़ मुझ पर टूटा था जब हवा बदसूरत हो चुकी थी जब बदल गया था मंज़र जब आग बरसने वाला था जब हो गयी थी मैं बदहवास जब खो रहा था मेरा होश जब काँप रही थी मैं जब प्राण निकलने वाला था सिर्फ तुम ही तुम थे तुम ही तुम । कमला सिंह 'ज़ीनत'

No comments:

Post a Comment