Monday, 7 July 2014

वह आज भी 
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फुलों की वादियों के बीच से 
एक पगडंडी आज भी निकलती है
कल इसी पगडंडी से होते हुए 
पहाडी के उस पार गयी थी मैं 
सुन्दर ,मनमोहक ,सुगंधित 
ओह स्वर्ग 
हरी पीली पत्तियाँ 
रंग बिरंगे फूल
शांत वातावरण
शीतल जल
मीठे झरने
और उसकी बाँसुरी की तान
वह उँची डाली पर बैठा
मुस्काता था
अपने पैर हिलाता था
बाँसुरी बजाता था
मेरे लौटने से पहले तक
आज वर्षों बीत गये
वह आज भी मुस्काता  होगा शायद
बाँसुरी बजाता होगा शायद
शायद,शायद

कमला सिंह 'ज़ीनत'

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