मेरी पुस्तक की रेत की लकीर से एक ग़ज़ल हाज़िर है
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आज की रात को ज़हर कर दे
ज़िंदगी मेरी मुख़्तसर कर दे
या तो मुझको तमाम कर खुद में
या तो खुद को मेरी नज़र कर दे
उम्र अपनी मेरी मोहब्बत में
एक सजदे में तू बसर कर दे
मैं तुझे चाहती हूँ ऐ ज़ालिम
तू ज़माने को ये खबर कर दे
नाम से तेरी जानी जाऊं मैं
मुझपे बस इतनी सी मेहर कर दे
कुछ न हो सकता हो 'ज़ीनत' के लिए
आ मेरी पुतलियों को तर कर दे
---कमला सिंह 'ज़ीनत'
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