Tuesday, 22 July 2014

------------नज़म-साया मेरा-------------
(क)-कर्ज़ के बोझ सी ढोती हूँ बराबर उसको क्या ही एहसास दिये जाता है जा़लिम साया कैसा जि़द्दी है कि इक पल न जुदा होता है कारवाँ की तरह चलता है वो साया जि़द्दी (म)-मख़्मली कोई मुसाफि़र की तरह पल पल वो मेरे एससास के कदमों से चला करता है मानता ही नहीं रुकता भी नहीं इक पल को (ला)-लाख साये से निकलने की भी कोशिश की है लड़ता रहता है किसी बच्चे की सूरत मुझसे लड़खडा़ऊँ तो मुझे रोक लिया करता है लब हिला दूँ तो ईशारे से मना करता है (सिं)सिंदुरी शोख़ चटख़ रंग है उसमें शामिल सिहरी हर बात का अंदाज़ बदल देता है सिसकियाँ लू़ तो वह रो जाता है भर आँसू से (ह)-हमको रहने नहीं देता है अकेला पागल हमने हर जो़र लगा रक्खा है दूरी के लिये हमसे वह चिपका पडा़ रहता है चादर की तरह (जी़)-जी़नती खुशबू का पर'वाना फिरा करता है जीना चाहूँ तो खुशी उसको बहुत होती है जीना मेरा उसे लगता है जैसे आब ए हयात (न)-नब्ज़ चलती है मेरी उसकी इन्हीं बातों से नाज़ करता है वो बस मुझ पे इसी तेवर से नक्श कर देता है इस दिल पे अपने दस्तक को (त)-तल्खि़याँ उसको नहीं भीतीं हैं ग़मखि़ने की तख़्ता ए दिल पे वही बैठा है सुल्ताँ कि तरह ताजदारों सा वह अपना है पराया मेरा हर घडी़ साथ में चिपका है वह साया मेरा
कमला सिंह 'ज़ीनत'

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