हाज़िर है एक ग़ज़ल दोस्तों
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दिल करता है प्यारा लिख दूँ तुझको मैं
अपनी आँख का तारा लिख दूँ तुझको मैं
मेरे अंदर तू फिरता है सुब्हो शाम
ऐसे में बंजारा लिख दूँ तुझको मैं
लिख दूँ पूरी ज़िंद को अपने कागज़ पर
आखिरी लफ्ज़ पे यारा लिख दूँ तुझको मैं
खुद को कश्ती कर दूंगी मैं देखना तुम
पहले यार किनारा लिख दूँ तुझको मैं
झील बनूँगी ,जम जाउंगी ,फ़िक्र न कर
ऐ दिलदार शिकारा लिख दूँ तुझको मैं
रुक सी गयी हूँ 'ज़ीनत' आगे क्या लिखना
तू है सिर्फ हमारा लिख दूँ तुझको मैं
----कमला सिंह 'ज़ीनत'
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