Friday 4 July 2014

 मेरी पुस्तक 'रेत की लकीर' से एक ग़ज़ल हाज़िर है दोस्तो 
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एक घायल से प्यार करती हूँ 
मैं तो पागल से प्यार करती हूँ 

संगेमरमर बदन है वो महबूब 
मिस्ले मख़मल से प्यार करती हूँ 

रोज़ फिरती हूँ मैं नागन की तरह 
शाख़े संदल से प्यार करती हूँ 

याद आता है वक़्त बनकर वो 
गुज़रे पल पल से प्यार करती हूँ 

डूब जाती हूँ उसकी चाहत में 
सच है दलदल से प्यार करती हूँ 

रुख़ पे पसरी थी जो 'ज़ीनत' उस दिन 
ऐसे काजल से प्यार करती हूँ 
----कमला सिंह 'ज़ीनत'

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