Friday, 7 February 2014

---------------ग़ज़ल--------------
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क्यूँ पूछते हो ताल्लुक मेरा ,सारे ज़माने से 
खुद ही बता दो रिश्ता मेरा क्या तेरे फ़साने से 

अंधेरों का बना डेरा ,मेरे ही आशियाने में
सवालों से घिरी हूँ मैं ,तेरे एक दूर जाने से 

मयस्सर है नहीं सुकूँ तुझको भी तेरे दिल में 
ख्यालों को मेरे खुद के तेरे दिल में बसाने से 

परेशाँ   है  तू ,  तेरा   वजूद  भी   है   परेशां    
तड़पता   है  मुहब्बत को मेरे तू आजमाने से  

साथ  रहने से मेरे  तुझे तकसीम मिलती है 
बड़ी तक़लीफ़ होती है मेरे एक दूर जाने से 

क्यूँ-कर  भागता  है  ज़ीनत  कि  परछाईं  से 
जानता  है मिट जाएगा तू ,मुझको मिटाने से 
------------------कमला सिंह ज़ीनत 

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