वही
-----------
वजूद मेरा
मेरे होने की
दलील वही
मैं प्यासी
जिस जा फिरुँ
बनता है सबील वही
वही है मेरा खुदा
मेरा रहनुमा मौला,
वही है दरिया
समंदर
तो मीठी झील वही
ज़माना तू क्या करेगा
रहम का भिखारी
तुम्हारे पास तो
एक सांस भी लेना
मुश्किल
नहीं है
दाता सिवा रब के
पूरी दुनियां में
मैं जानती हूँ
मुझे फ़क्र है
रहमानी पर
मुझे फ़क्र है
सुल्तानी पर
मैं जानती हूँ
मुझे फ़क्र है
वो ख़ालिक़ है
और मालिक है
मैं जानती हूँ
नहीं उसके मुक़ाबिल कोई
वो आसमान का मालिक
वही ज़मीन ,वाला
परिंदों का ख़ालिक़
वही
चरिन्दों का शाह
हवा चले तो
वही ज़ेरो जबर
करता है
उसी के दम पे ज़माना
उड़ान भरता है
जलाल उसका
कुदूरत पे है
जलील वही
वज़ूद मेरा
मेरे होने की
दलील वही
--कमला सिंह 'ज़ीनत '
No comments:
Post a Comment